आखिरी पड़ाव -1

आखिरी पड़ाव -1

आखिरी-पड़ाव

आखिरी पड़ाव  (akhiari-padaw)

कई बार लक्ष्य नजरों के सामने होते हुए भी हम लक्ष्य तक नही पहुँच पाते है! ऐसा क्यों?_

आखिरी पड़ाव (akhiari-padaw)

सुंदरबन इलाके में रहने वाले ग्रामीणों पर हर समय जंगली जानवरों का खतरा बना रहता था। खास तौर पर जो युवक घने जंगलों में लकड़ियाँ चुनने व शहद इकट्ठा करने जाते थे, उन पर कभी भी बाघ हमला कर सकते थे। यही वजह थी कि वे सब पेड़ों पर तेजी से चढ़ने-उतरने का प्रशिक्षण लिया करते थे।

प्रशिक्षण गाँव के ही एक बुजुर्ग दिया करते थे, जो अपने समय में इस कला के महारथी माने जाते थे। आदरपूर्वक सब उन्हें बाबा-बाबा कह कर पुकारा करते थे।

बाबा कुछ महीनों से युवाओं के एक समूह को पेड़ों पर तेजी से चढ़ने-उतरने की बारीकियाँ सिखा रहे थे और आज उनके प्रशिक्षण का आखिरी दिन था।

बाबा बोले, “आज आपके प्रशिक्षण का आखिरी दिन है, मैं चाहता हूँ, आप सब एक-एक कर इस चिकने और लम्बे पेड़ पर तेजी से चढ़ कर और उतर कर दिखाएँ।” सभी युवक अपना कौशल दिखाने के लिए तैयार हो गए।

पहले युवक ने तेजी से पेड़ पर चढ़ना शुरू किया और देखते ही देखते पेड़ की सबसे ऊँची शाखा पर पहुँच गया। फिर उसने उतरना शुरू किया। जब वह लगभग आधा उतर आया तो बाबा बोले, “सावधान, ज़रा संभल कर। आराम से उतरो, क़ोइ जल्दबाजी नहीं….।” युवक सावधानी पूर्वक नीचे उतर आया।

इसी तरह बाकी युवक भी पेड़ पर चढ़े और उतरे और हर बार बाबा आधा उतरने के बाद उन्हें सावधान रहने को कहते।

यह बात युवकों को कुछ अजीब लगी, और उन्ही में से एक ने पुछा, “बाबा, हमें आपकी एक बात समझ में नहीं आई, पेड़ का सबसे कठिन हिस्सा तो एकदम ऊपर वाला था, जहाँ पे चढ़ना और उतरना दोनों ही बहुत कठिन था, आपने तब हमें सावधान होने के लिए नहीं कहा, लेकिन जब हम पेड़ का आधा हिस्सा उतर आये और बाकी हिस्सा उतरना बिलकुल आसान था तभी आपने हर बार हमें सावधान होने के निर्देश क्यों दिये?”

बाबा मुस्कराये, और फिर बोले, “बेटे ! यह तो हम सब जानते हैं कि ऊपर का हिस्सा सबसे कठिन होता है, इसलिए वहाँ पर हम सब खुद ही सतर्क हो जाते हैं और पूरी सावधानी बरतते हैं। लेकिन जब हम अपने लक्ष्य के समीप आखिरी पड़ाव (akhiari-padaw) पहुँचने लगते हैं तो वह हमें बहुत ही सरल लगने लगता है….

हम जोश में होते हैं और अति आत्मविश्वास से भर जाते हैं। इसी समय सबसे अधिक गलती होने की सम्भावना होती है। यही कारण है कि मैंने तुम लोगों को आधा पेड़ उतर आने के पश्चात सावधान किया ताकि तुम अपनी मंजिल के निकट आकर आखिरी पड़ाव (akhiari-padaw)  पर कोई गलती न कर बैठो!“

सभी युवक बाबा की बात सुनकर शांत हो गए, आज उन्हें एक बहुत बड़ी सीख मिल चुकी थी।

मित्रों, सफल होने के लिए लक्ष्य निर्धारित करना बहुत ही जरूरी है, और यह भी बहुत ज़रूरी है कि जब हम अपने लक्ष्य को हासिल करने के करीब पहुँच जाएँ, मंजिल को सामने पायें, तो उस समय भी पूरे धैर्य के साथ अपना कदम आगे बढ़ाएँ।

कई बार हम लक्ष्य के निकट पहुँच कर अपना धैर्य खो देते हैं और गलतियाँ कर बैठते हैं, जिस कारण हम अपने लक्ष्य से चूक जाते हैं। इसलिए लक्ष्य के आखिरी पड़ाव पर पहुँच कर भी किसी तरह की असावधानी नहीं बरतनी चाहिए और लक्ष्य प्राप्त कर के ही दम ले।

प्रेरक : अधिकतर लोग सफलता के इसी घडी में अपने कार्य को संभाल नहीं पता है और असफलता के दल दल में फस जाते हैं।

आखिरी पड़ाव

आखिरी पड़ाव

 

हमारे अन्य पोस्ट देखने के लिए हमारे वेबसाइट https://fitnesswellness2.com/ पर विजिट करे।

हमारे यूट्यूब चैनल हेल्थ टिप्स इन हिंदी देखने के लिए हमारे https://www.youtube.com/@murariprasad2

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *