Pandit Deendayal Upadhyay : Biography (1)

Pandit Deendayal Upadhyay Biography (1)

पंडित दीन दयाल उपाध्याय : जीवनी

Pandit Deendayal Upadhyay Biography (1)

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पंडित दीन दयाल उपाध्याय :बचपन

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे सामान्य व्यक्ति,सक्रिय कार्यकर्ता कुशल संगठक,प्रभावी नेता और मौलिक विचारक थे,साथ ही वे समाजशास्त्री,अर्थशास्त्री,राजनीति विज्ञानी और दार्शनिक भी थे।

पण्डित दीनदयाल जी का जन्म 25 सितंबर 1916 को जयपुर जिले के धानक्या गांव में हुआ। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय व माता जी का नाम रामप्यारी था। पण्डित दीनदयाल जी के पिताजी रेलवे में जलेसर स्टेशन पर सहायक स्टेशन मास्टर थे।

पण्डित दीनदयाल जी के छोटे भाई का नाम शिवदयाल था।  उस समय उनके नाना चुन्नी लाल शुक्ल धानक्या,जयपुर में स्टेशन मास्टर थे।  दीनदयाल जी की माता श्रीमति रामप्यारी जी को अधिकांश समय अपने पिता चुन्नीलाल जी के पास रहना होता था।

दीनदयाल जी का शिशुकाल अपने नाना जी चुन्नीलाल जी के धानक्या रेलवे-स्टेशन के क्वार्टर में ही व्यतित हुआ।  यहीं पर उनके शिशुकाल की संस्कार सृष्टि पल्लवित हुई।  पण्डित दीनदयाल जी ने चलना-फिरना व बोलना धानक्या में ही अपने नानाजी के यहां पर सीखा।

दीनदयाल जी ने अक्षरज्ञान व प्रारम्भिक शिक्षा अपने नाना चुन्नीलाल जी के रेलवे क्वार्टर पर ही प्राप्त की।

दीनदयाल जी जब 3 वर्ष के थे तब उनके पिता जी का देहांत हो गया।  तत्पश्चात, माता रामप्यारी जी को क्षय रोग हो गया और 8 अगस्त 1924 को उनका देहावसान हो गया था।

दीनदयाल जी धानक्या में उनके नाना  चुन्नीलाल जी के 1924 में सेवानिवृत्त होने तक यहां रहे।  तत्पश्चात वे मामा श्री राधारमण जी के साथ रहने लगे।  दीनदयाल जी को सबसे पहले गंगापुर सिटी, सवाई माधोपुर के रेलवे विद्यालय में 1 फरवरी 1924 को प्रिपरेयरी – बी कक्षा में भर्ती कराया।  थोड़े दिन बाद राधारमण जी का वहां से कोटा स्थानांतरण हो गया ।

दीनदयाल जी उनके साथ कोटा में अध्ययन हेतु चले गए।  वे अपने चचेरे मामा नारायणलाल जी के साथ राजगढ़ ( अलवर) उच्च प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने गए।  दीनदयाल जी के मामा नारायण लाल जी का स्थानांतरण राजगढ़ से सीकर हो गया।

उन्होंने सीकर में 1935 में दसवीं की परीक्षा श्री कल्याण हाई स्कूल में पढ़कर अजमेर बोर्ड से दी और अजमेर बोर्ड में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर स्वर्ण पदक प्राप्त किया।  उन्होंने संस्कृत,गणित और भूगोल में विशेष योग्यता के अंक प्राप्त किए।

सीकर के महाराजा श्री कल्याण सिंह जी ने दीनदयाल जी को स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया।  उन्होंने दीनदयाल जी को 250 रुपये का पुरस्कार और 10 रुपये मासिक छात्रवृत्ति भी स्वीकृत की।

तत्पश्चात, दीनदयाल जी इन्टरमीडियट की पढाई के लिए पिलानी गए जहां बिरला इन्टर कॉलेज से इन्टरमीडियट की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

पं.दीनदयाल उपाध्याय: उच्च शिक्षा  Pandit Deendayal Upadhyay : Biography (1)

सेठ घनश्याम दास जी बिरला ने उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया। पण्डित दीनदयाल जी का 1916 से 1939 तक का लगभग 23 वर्ष की आयु तक का जीवन राजस्थान में व्यतित हुआ।

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आगे की उच्च शिक्षा के लिए वे कानपुर चले गए।  कानपुर में उनका सम्पर्क नाना जी देशमुख, सुंदर सिंह भण्डारी से हुआ। श्री भाऊराव जी देवरस के सम्पर्क में आने पर वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गए।  तत्पश्चात,दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए।

सन 1952 में अखिल भारतीय जनसंघ का गठन होने पर वे संगठन मंत्री बनाये गये। दो वर्ष बाद सन 1953 में वे अखिल भारतीय जनसंघ के महामंत्री निर्वाचित हुए। उस समय डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जनसंघ के अध्यक्ष थे।

दीनदयाल जी अपना दायित्व इतनी कुशलता से व सतर्कता से निभाया कि डॉ मुखर्जी ने उनके बारे में टिप्पणी की ” यदि मुझे दीनदयाल मिल जाए तो मैं देश का राजनीतिक नक्शा बदल दूँगा। ”

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ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

ऋषि और चूहा The Sage and The माउस की कहानी  :

ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

एक वन में एक ऋषि रहते थे. उनके डेरे पर बहुत दिनों से एक चूहा भी रहता आ रहा था. यह चूहा ऋषि से बहुत प्यार करता था. जब वे तपस्या में मग्न होते तो वह बड़े आनंद से उनके पास बैठा भजन सुनता रहता. यहाँ तक कि वह स्वयं भी ईश्वर की उपासना करने लगा था. लेकिन कुत्ते-बिल्ली और चील-कौवे आदि से वह सदा डरा-डरा और सहमा हुआ सा रहता.*

एक बार ऋषि के मन में उस चूहे के प्रति बहुत दया आ गयी. वे सोचने लगे कि यह बेचारा चूहा हर समय डरा-सा रहता है, क्यों न इसे शेर बना दिया जाए. ताकि इस बेचारे का डर समाप्त हो जाए और यह बेधड़क होकर हर स्थान पर घूम सके. ऋषि बहुत बड़ी दैवीय शक्ति के स्वामी थे. उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर उस चूहे को शेर बना दिया और सोचने लगे कि अब यह चूहा किसी भी जानवर से नहीं डरेगा और निर्भय होकर पूरे जंगल में घूम सकेगा.*

लेकिन चूहे से शेर बनते ही चूहे की सारी सोच बदल गई. वह सारे वन में बेधड़क घूमता. उससे अब सारे जानवर डरने लगे और प्रणाम करने लगे. उसकी जय-जयकार होने लगी. किन्तु ऋषि यह बात जानते थे कि यह मात्र एक चूहा है, वास्तव में शेर नहीं है.*

अतः ऋषि उससे चूहा समझकर ही व्यवहार करते. यह बात चूहे को पसंद नहीं आई कि कोई भी उसे चूहा समझ कर ही व्यवहार करे. वह सोचने लगा की ऐसे में तो दूसरे जानवरों पर भी बुरा असर पड़ेगा. लोग उसका जितना मान करते हैं, उससे अधिक घृणा और अनादर करना आरम्भ कर देंगे.*

अतः चूहे ने सोचा कि क्यों न मैं इस ऋषि को ही मार डालूं. फिर न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी. यही सोचकर वह ऋषि को मारने के लिए चल पड़ा. ऋषि ने जैसे ही क्रोध से भरे शेर को अपनी ओर आते देखा तो वे उसके मन की बात समझ गये. उनको शेर पर बड़ा क्रोध आ गया.*

अतः उसका घमंड तोड़ने के लिए  ऋषि ने अपनी दैवीय शक्ति से उसे एक बार फिर चूहा बना दिया.*

शिक्षा:-* ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

दोस्तों! हमें कभी भी अपने हितैषी का अहित नहीं करना चाहिए, चाहे हम कितने ही बलशाली क्यों न हो जाए. हमें उन लोगों को हमेशा याद रखना चाहिए जिन्होंने हमारे बुरे वक्त में हमारा साथ दिया होता है. इसके अलावा हमें अपने बीते वक्त को भी नहीं भूलना चाहिए. चूहा यदि अपनी असलियत याद रखता तो उसे फिर से चूहा नहीं बनना पड़ता. बीता हुआ समय हमें घमंड से बाहर निकालता है..!!

इसके परे आज कल की दुनिया में इसके विपरीत या व्यापारिक स्पर्धा में देखा जाता है की आप जिस भी व्यक्ति को हाथ पकड़कर ऊपर ले जाते है वही व्यक्ति आपको धोखा दे जाते है ऐसा हर केस में नहीं होता है पर अधिक से अधिक केस में देखा जाता है।

पौराणिक कहानी में भी जब भगवन शिव जी ने भस्मासुर को इस बात का वरदान दे दिया की तुम जिस किसी के भी सर पर हाथ रखोगे वह जल के भस्म हो जायेगा और फिर किया हुआ वह भस्मासुर भगवान शिव को ही टारगेट कर लिया और फिर भगवान शिव को भी उससे भयभीत होकर भागना पड़ा। अतः किसी को कोई भी पावर देने से पहले यह तय कर लेना चाहिए की किया वह व्यक्ति उस पावर के पात्र है या भी नहीं।

जिस भी व्यक्ति ने आपको कठिन समय में मदद किया है उस व्यक्ति का कभी भी अहित नहीं करना चाहिए ।

*🙏प्रणाम*🙏
🙏बोलो जय सीताराम🙏

*सूरज योगी*

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