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गेहूं है की तोंद

गेहूं है की तोंद

गेहूं है की तोंद

Side Effects Of Wheet

गेहूं की विशेषता।

*गेंहू मूलतः भारत की फसल नहीं है अमेरिका के एक हृदय रोग विशेषज्ञ हैं डॉ विलियम डेविस…उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी 2011 में जिसका नाम था “Wheat belly गेंहू की तोंद”…

यह पुस्तक अब फूड हेबिट पर लिखी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक बन गई है…पूरे अमेरिका में इन दिनों गेंहू को त्यागने का अभियान चल रहा है…कल यह अभियान यूरोप होते हुये भारत भी आएगा*

यह पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं और कोई फ़्री में पढ़ना चाहे तो भी मिल सकती है, चौंकाने वाली बात यह है कि डॉ डेविस का कहना है कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया को अगर मोटापे, डायबिटिज और हृदय रोगों से स्थाई मुक्ति चाहिए तो उन्हें पुराने भारतीयों की तरह ज्वार, बाजरा, रागी, चना, मक्का मटर, कोदरा, जो, सावां, कांगनी ही खाना चाहिये गेंहू नहीं जबकि यहां भारत का हाल यह है कि 1980 के बाद से लगातार सुबह शाम गेंहू खा खाकर हम महज 40 वर्षों में मोटापे और डायबिटिज के मामले में दुनिया की राजधानी बन चुके हैं…।

गेंहू मूलतः भारत की फसल नहीं है. यह मध्य एशिया और अमेरिका की फसल मानी जाती है और आक्रांताओ के भारत आने के साथ यह अनाज भारत आया था…उससे पहले भारत में जौ की रोटी बहुत लोकप्रिय थी और मौसम अनुसार मक्का, बाजरा, ज्वार आदि…भारतीयों के मांगलिक कार्यों में भी जौ अथवा चावल (अक्षत) ही चढाए जाते रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हीं दोनों अनाजों का अधिकतम जगहों पर उल्लेख है..हमारे पिताजी,दादाजी, कहते थे कि 1975-80 तक भी आम भारतीय घरों में *बेजड़ (मिक्स अनाज, Multigrain) की रोटी का प्रचलन था जो धीरे धीरे खतम हो गया।

गेहूं है की तोंद

1980 के पहले आम तौर पर घरों में मेहमान आने या दामाद के आने पर ही गेंहू ( की रोटी बनती थी और उस पर घी लगाया जाता था, अन्यथा बेजड़ की ही रोटी बनती थी ……आज घरवाले उसी बेजड़ की रोटी को चोखी ढाणी में खाकर हजारों रुपए खर्च कर देते हैं….।

हम अक्सर अपने ही परिवारों में बुजुर्गों के लम्बी दूरी पैदल चल सकने, तैरने, दौड़ने, सुदीर्घ जीने, स्वस्थ रहने के किस्से सुनते हैं। वे सब मोटा अनाज ही खाते थे गेंहू नहीं।एक पीढ़ी पहले किसी का मोटा होना आश्चर्य की बात होती थी, आज 77 प्रतिशत भारतीय ओवरवेट हैं और यह तब है जब इतने ही प्रतिशत भारतीय कुपोषित भी हैं…फ़िर भी 30 पार का हर दूसरा भारतीय अपनी तौंद घटाना चाहता है….।

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गेंहू की लोच ही उसे आधुनिक भारत में लोकप्रिय बनाये हुये है क्योंकि इसकी रोटी कम समय और कम आग में आसानी से बन जाती है…पर यह अनाज उतनी आसानी से पचता नहीं है…समय आ गया है कि भारतीयों को अपनी रसोई में 80-90 प्रतिशत अनाज जौ, ज्वार, बाजरे, रागी, मटर, चना, रामदाना आदि को रखना चाहिये और 10-20 प्रतिशत गेंहू को…

हाल ही कोरोना ने जिन एक लाख लोगों को भारत में लीला है उनमें से डायबिटिज वाले लोगों का प्रतिशत 70 के करीब है…वाकई गेहूं त्यागना ही पड़ेगा…. अन्त में एक बात और भारत के फिटनेस आइकन 54 वर्षीय टॉल डार्क हेंडसम (TDH) मिलिंद सोमन गेंहू नहीं खाते हैं….

मात्र बीते 40 बरसों में यह हाल हो गया है तो अब भी नहीं चेतोगे फ़िर अगली पीढ़ी के बच्चे डायबिटिज लेकर ही पैदा होंगे…शेष- समझदार को इशारा ही काफी है।

डायबिटीज से निजात पाने के लिए आप मल्टीग्रैन खा सकते हैं जिसमे जौ, चना , ज्वार, बाजरा , अलसी, सोयाबीन, मक्का, रागी, गेहूं कम मात्रा में डालकर खा सकते है जिससे आप बिविन्न प्रकार के विटामिन और खनिज प्राप्त हो सकता है ।  स्वस्थ्य रहने के लिए हमें पुराने मोटा अनाज को ही अपनाना पड़ेगा ।

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