GURU PURNIMA : RSS गुरु पूर्णिमा बौद्धिक 1

गुरु पूर्णिमा GURU PURNIMA आषाढ़ मास में पूर्णिमा के दिन मनाया जाया है । प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व रहा है।
लगभग 5270 वर्ष पूर्व में महर्षि कृष्ण द्विपायन जी ने आज ही के दिन सभी उपनिषीदो एवं वेदों को संकलित कर दुनिया के सामने श्री मद भगवत गीता का लोकार्पण किया था। उनका जन्म भी इसी दिन हुए है। बाद में उनका नाम वेद व्यास हुआ इसलिए इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

GURU PURNIMA
गुरु किसे कहते है या गुरु का किया अर्थ होता है ?
गुरु वह जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाये , जो हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जावे , जो हमारे जीवन का मार्गदर्शन कर सके उसे गुरु कहते है। व्यक्ति कि प्रथम गुरु उनकी माँ होती है ।
गुरु वे जो समदराष्ट्रा हो , सर्वग्राही हो , संस्पर्शी हो , सर्वव्यापी हो जो केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पुरे राष्ट्र का मार्ग दर्शन कर सके।
GURU PURNIMA पर गुरु की महिमा का वर्णन करना अति आवश्यक है ।
संत तुका राम ने कहा है कि गुरु के बिना समाधान नहीं होता है इसलिए गुरु के पाँव पखारिये।
जगत गुरु शंकराचार्य गुरु कि खोज में केरल से विंध्याचल तक का प्रवास किया।
नरेंद्र को स्वामी विवेका नन्द किसने बनाया वह गुरु ही था ।
गुरु की महिमा इस दोहे से हम समझते हैं :-
” गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागु पाँव ”
” बलहारी गुरु आपने , गोविन्द दिओ बताय । “
यदि गुरु ओर गोविन्द यानि की भगवान एक साथ एक जगह खड़े हो तो किसके पहले पाँव छुए जाये , तब भगवान स्वयं ही गुरु का नाम पहले बता देते हैं, अर्थात गुरु का भगवान से भी बड़ा दर्जा मिला हुआ है । एक ओर दोहे से गुरु के महत्व का समजने की कोशिश करते है :
” यह तन विष री बेलड़ी, गुरु अमृत का खान “।
” शीश दिए गुरु मिले , तो भी सस्ता जान ।।
इस दोहे में साफ साफ अर्थ निकलता है की हमारा शरीर एक विष की बेल है जबकि गुरु अमृत की खान है , अगर अपना शीश देने के बदले अगर गुरु मिले तो वह भी सस्ता है।
गुरु और माँ एवं बाप कभी भी कठोर नहीं होते है , अगर कभी कठोर लगे तो एक बार रूक कर देखना चाहिए कि कही गुरु अपनी परीक्षा तो नहीं ले रही है निम्न दोहा से यह बात समझ में आता है :-
” गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है , गढ़ गढ़ काढ़े खोट “
” अंतर हाथ सहार दे, बहार मारे चोट ”
इस दोहे का मतलब है कि कैसे कुम्हार घड़ा को बनाते समय आकर देते समय पीटता हुआ नजर आता है पर ध्यान से देखने पर पता चलता है कि कुम्हार का एक हाथ घड़ा के अंदर से सहारा दिया हुआ होता है । ठीक वैसे गुरु और माँ बाप होते अगर आपको कभी लगता हैं की वे कठोरता के पेश आते हैं ।
एक व्यक्ति के अनेक गुरु हो सकते है । जिस किसी से भी कुछ आपने सीखा है वह उस क्षेत्र के आपके गुरु हुए । आप चींटी से भी कुछ सिख सकते हैं।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रारम्भ विजय दसवीं के दिन सन 1925 में परम पूजनीय डॉक्टर केशव राव बलिराम हेडगेवार ने कुछ स्कूली छात्रों के साथ मिलकर किया था । अब 100 वर्ष होने को है ।
संघ कुल 6 उत्सव मानते है सबसे पहला वर्ष प्रतिपदा , हिन्दू साम्राज्यदिनों उत्सव, गुरु पूर्णिमा GURU PURNIMA , रक्षा बंधन , विजयदसवी उत्सव और मकर संक्रांति ।
गुरु पूर्णिमा GURU PURNIMA उसमे से एक है , हिन्दू समाज के तरह ही संघ भी गुरु पूर्णिमा GURU PURNIMA के उत्सव को मानते है ।
संघ में गुरु कौन ?
संघ में भगवा ध्वज को गुरु मानते है। संघ के निर्माता डॉ हेडगेवार ने काफी सोच विचार करने के बाद संघ को भगवा ध्वज को ही गुरु माना क्योकि किसी व्यक्ति में कभी भी स्वार्थ , कमी , ईष्या आदि आ सकते है लेकिन भगवा ध्वज जो की एक तत्व है । संघ के स्वयं सेवक भगवा ध्वज को ही गुरु मानते हुए प्रतिदिन संघ की शाखा में योग व्यायाम खेल और बौद्धिक कार्यक्रम करते है।
भगवा ध्वज ही गुरु क्यों / भगवा ध्वज की महत्ता
प्राचीन काल से ही भगवा ध्वज हिन्दू संस्कृति का अमिट प्रतीकों में से एक है । श्री राम , श्री कृष्ण, अर्जुन, क्षत्रपति शिवा जी महाराज अपने रथों पर भगवा ध्वज को फहराया, हमारे पूर्वजो ने मंदिरो के ऊपर , मठो के ऊपर भगवा रंग के ही ध्वज को लगाया है।
भगवा ध्वज वीरता और त्याग का प्रतिक है । जब भी कोई योद्धा रणक्षेत्र में लड़ने के लिए जाता है तब वह अपने शिर पर भगवा रंग के ही पत्ता बांध कर जाते है। अर्थात भगवा रंग को हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्व है।
गुरु के प्रति समर्पण
प्राचीन कल से ही गुरु प्रति समर्पण की चर्चा आपलोगो ने सुनी होगी जिसमे कुछ है :-
- कृष्ण , बलराम और सांदीपनि
- शिवजी महाराज और समर्थ दस जी महाराज
- गुरु भक्त आरुणि और गुरु द्यौम्य
- एकलव्य और द्रोणाचार्य
बौद्धिक में इन सभी के वर्णन कर सकते है।
समर्पण हमें किनको करनी है , समर्पण उनको जिनको समर्पण की कोई जरुरत नहीं है, जो हमारे समर्पण को हमारे लिए ही उपयोगी बना दे , जैसे सूरज को पानी को कोई जरुरत नहीं है फिर भी हम उनको जल चढ़ाते है और सूरज उस पानी का मेघ बनकर हमारे लिए ही उपयोगी बना देते है।
समर्पण उनको जिनसे हमारा समर्पण धन्य हो जाये।
धन का समर्पण करने से धन से मोह काम होता है , तन समर्पण करने से हमारा शरीर ह्रस्ट पुष्ट होता है , मन का समर्पण करने से अभिमान में में कमी आती है ,
संघ में गुरु दक्षिणा
जब गुरु की चर्चा चली है तब गुरु दक्षिणा का भी चर्चा होनी चाहिए। संघ आज तक किसी भी संस्था से कोई चंदा नहीं लेते है वह केवल और केवल स्वयं सेवक के द्वारा समर्पण के तौर पर दिया गया गुरु दक्षिणा से ही साल भर के खर्चो का निस्तारण करते है। संघ में सर्व प्रथम गुरु दक्षिणा सन 1928 में हुई जिसमें 84 रुपया और कुछ पैसे शामिल है , इस राशि में किसी स्वयं सेवक के आधा पैसे भी शामिल है।
इस बौद्धिक में कुछ समसमयकी विषय जोड़कर बौद्धिक का अंत करना चाहिए जैसे GURU PURNIMA 2024 में पर्यावरण जैसे विषय को जोड़कर अपनी वाणी को विराम देनी चाहिए।
Please Visit our website to see our other posts https://fitnesswellness2.com
Also visit our youtube Channel https://www.youtube.com/@murariprasad2
Leave a Reply