Category Motivational Stories

75th Year of The Student Movement Dedicated to Indianness ABVP

75th Year of The Student Movement Dedicated to Indianness ABVP

अभाविप: भारतीयता को समर्पित छात्र आंदोलन का 75 वॉं वर्ष‌।

आशुतोष सिंह
राष्ट्रीय मीडिया संयोजक
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

भारतीयता को समर्पित छात्र आंदोलन का 75 वॉं वर्ष‌ ABVP

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ABVP

75th Year of The Student Movement Dedicated to Indianness ABVP

75th Year of The Student Movement Dedicated to Indianness ABVP

75th Year of The Student Movement Dedicated to Indianness ABVP

भारतीयता के उदात्त विचार को समर्पित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ABVP की ऐतिहासिक संगठनात्मक यात्रा आज 9 जुलाई को अपने 75वें वर्ष में प्रवेश कर रही है, यह यात्रा 9 जुलाई 1949 को देश की स्वतंत्रता के उपरांत राष्ट्र पुनर्निर्माण तथा समर्थ व सबल युवा पीढ़ी गढ़ने का श्रेष्ठ लक्ष्य लिए आरंभ हुई थी।

किसी भी संगठन के लिए 75वें वर्ष तक पहुंचना गौरवशाली, महत्वपूर्ण तथा उत्सव का अवसर होता है, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की संगठनात्मक यात्रा में यह अवसर ऐसे समय आया है जब देश की स्वतंत्रता का अमृतकाल चल रहा है। देश की विकास यात्रा के साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की यात्रा राष्ट्र समर्पित सक्षम युवा पीढ़ी के निर्माण की रही है।

 

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का स्वरूप अपने 75वें वर्ष में विस्तृत तथा बहुआयामी हो गया है। पिछले सत्र में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की कुल सदस्यता 45 लाख से अधिक रही है तथा देशभर में 21 हजार से अधिक स्थानों पर अभाविप की इकाईयां व संपर्क स्थान हैं, यह केवल एक आंकड़ा मात्र नहीं है बल्कि यह विद्यार्थी परिषद के अखिल भारतीय स्वरूप को स्पष्टतया सामने लाने के साथ वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े छात्र संगठन होने की बात को सिद्ध करता है‌।

विगत 74 वर्षों से शिक्षा क्षेत्र के विविध विषयों पर कार्यरत अभाविप की सकारात्मक शक्ति ने भारतीय शैक्षणिक परिसरों से राजनीति, सिनेमा, मीडिया, व्यापार,शिक्षा, प्रशासन आदि क्षेत्रों को प्रभावशाली युवा नेतृत्व दिया है, इन विविध क्षेत्रों में आज कई ऐसी नामचीन हस्तियां हैं जो अपने विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से सक्रिय रूप से सम्बद्ध रही है।

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देश में आपातकाल जैसे बड़े संकट के विरुद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद  ABVPकी महत्वपूर्ण भूमिका व योगदान के साथ-साथ लघु स्तर से लेकर वृहद स्तरीय ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में देश के युवा वर्ग ने सकारात्मक परिवर्तन निमित्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अभाविप ABVP के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे व वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर अभाविप के संकल्प निमित्त लिखते हैं-भारत हमारी मां है, हम पुत्र की भांति सभी देशवासियों की सेवा करेंगे, इस संकल्प के साथ विद्यार्थी परिषद की स्थापना हुई थी।… विद्यार्थी परिषद का कार्यक्षेत्र भले ही शैक्षिक परिसर अर्थात कैंपस है, परंतु विचार का क्षेत्र शिक्षा से आगे बढ़कर देशहित के हर मुद्दे के साथ भी सम्बद्ध है।

 

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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की यात्रा भारतीय मूल्यों से अनुप्राणित राष्ट्रप्रेमी युवाओं की समर्थ पीढ़ी के निर्माण की यात्रा रही है। कोरोना महामारी के दौरान जब देश पर संकट था तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में अनेक युवाओं ने लोगों की पीड़ाओं को कम करने के लिए उल्लेखनीय कार्य किया, यह हाल का उदाहरण है, ऐसे कितने ही अवसर रहे हैं जब देश में अभाविप के नेतृत्व में युवाओं का समूह विभिन्न समस्याओं के समाधान के निमित्त सबसे पहले आगे आया।

वर्तमान में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद शिक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण हितधारक के रूप में अपनी भूमिका निर्वहन कर रही है जिससे देश के शिक्षा क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन आ सकें।

आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की विभिन्न शाखाएं पर्यावरण, सेवा,खेल आदि क्षेत्रों में भी कार्यरत हैं तथा युवाओं को इन विषयों से सम्बद्ध कर समाज में सार्थक परिवर्तन लाने का कार्य कर रही हैं।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने सतत् नवीन विषयों तथा क्षेत्रों से अपनी यात्रा को सम्बद्ध किया है,इस कारण 75वें वर्ष में पहुंची यह यात्रा कहीं भी बोझिल या रूकी होने के स्थान पर सतत् गतिशील तथा नवीन क्षेत्रों में संलग्न दिखती है।

75th Year of The Student Movement Dedicated to Indianness ABVP

एक ओर बाकी छात्र संगठन जहां सीमित क्षेत्रों में छिटपुट आंदोलनों तक ही सीमित हैं, वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की यात्रा केवल आंदोलन तक सीमित न रह, अनुशासनात्मक रचनात्मकता से युवाओं को विश्व तथा राष्ट्र से सम्बंधित विभिन्न विषयों से जोड़ उन्हें भारतीय मूल्यों के अनुरूप निरंतर गतिशील रह बेहतर करने की प्रेरणा दे रही है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की अनुशासनयुक्त, भारतीयता केन्द्रित विचार पथ पर गतिशीलता की यह यात्रा निरंतर प्रवाहमान रहेगी जिससे आने वाली पीढ़ियां नई चुनौतियों का सामना कर देश के पुनर्निर्माण का स्वप्न पूर्ण कर सकें और सक्षम नागरिक के रूप में भारतीय युवा प्रत्येक क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका निभाएं। राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस पर सभी देशवासियों को शुभकामनाएं।

75th Year of The Student Movement Dedicated to Indianness ABVP

( लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक हैं।)

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God Keeps Account of This Wage

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इस मजदूरी का हिसाब भगवान रखते हैं

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अस्पताल में एक कोरोना पेशेंट का केस आया ।मरीज बेहद सीरियस था । अस्पताल के मालिक डॉक्टर ने तत्काल खुद जाकर आईसीयू में केस की जांच की।

दो-तीन घंटे के ओपरेशन के बाद डॉक्टर बाहर आया और अपने स्टाफ को कहा कि इस व्यक्ति को किसी प्रकार की कमी या तकलीफ ना हो। और उससे इलाज व दवा के पैसे न लेने के लिए भी कहा ।

मरीज तकरीबन 15 दिन तक मरीज अस्पताल में रहा।

जब बिल्कुल ठीक हो गया और उसको डिस्चार्ज करने का दिन आया तो उस मरीज का तकरीबन ढाई लाख रुपये का बिल अस्पताल के मालिक और डॉक्टर की टेबल पर आया।

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डॉक्टर ने अपने अकाउंट मैनेजर को बुला करके कहा …

“इस व्यक्ति से एक पैसा भी नहीं लेना है। ऐसा करो तुम उस मरीज को लेकर मेरे चेंबर में आओ। “मरीज व्हीलचेयर पर चेंबर में लाया गया। डॉक्टर ने मरीज से पूछा – “भाई ! क्या आप मुझे पहचानते हो?”

मरीज ने कहा “लगता तो है कि मैंने आपको कहीं देखा है।”

डॉक्टर ने कहा …”याद करो, अंदाजन दो साल पहले सूर्यास्त के समय शहर से दूर उस जंगल में तुमने एक गाड़ी ठीक की थी। उस रोज मैं परिवार सहित पिकनिक मनाकर लौट रहा था कि अचानक कार में से धुआं निकलने लगा और गाड़ी बंद हो गई। कार एक तरफ खड़ी कर मैंने चालू करने की कोशिश की, परंतु कार चालू नहीं हुई। अंधेरा थोड़ा-थोड़ा घिरने लगा था। चारों और जंगल और सुनसान था। परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर चिंता और भय की लकीरें दिखने लगी थी और सब भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि कोई मदद मिल जाए।”

थोड़ी ही देर में चमत्कार हुआ। बाइक के ऊपर तुम आते दिखाई पड़े ।हम सब ने दया की नजर से हाथ ऊंचा करके तुमको रुकने का इशारा किया।

तुमने बाईक खड़ी कर के हमारी परेशानी का कारण पूछा। तुमने कार का बोनट खोलकर चेक किया और कुछ ही क्षणों में कार चालू कर दी।

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“हम सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। हमको ऐसा लगा कि जैसे भगवान ने आपको हमारे पास भेजा है क्योंकि उस सुनसान जंगल में रात गुजारने के ख्याल मात्र से ही हमारे रोगंटे खड़े हो रहे थे।

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तुमने मुझे बताया था कि तुम एक गैराज चलाते हो ।

“मैंने आपका आभार जताते हुए कहा था कि रुपए पास होते हुए भी ऐसी मुश्किल समय में मदद नहीं मिलती।

तुमने ऐसे कठिन समय में हमारी मदद की, इस मदद की कोई कीमत नहीं है, यह अमूल्य है परंतु फिर भी मैं पूछना चाहता हूँ कि आपको कितने पैसे दूं ?”

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उस समय तुमने मेरे आगे हाथ जोड़कर जो शब्द कहे थे, वह शब्द मेरे जीवन की प्रेरणा बन गये हैं “तुमने कहा था कि “मेरा नियम और सिद्धांत है कि मैं मुश्किल में पड़े व्यक्ति की मदद के बदले कभी कुछ नहीं लेता।

मेरी इस मजदूरी का हिसाब भगवान् रखते हैं। “उसी दिन मैंने सोचा कि जब एक सामान्य आय का व्यक्ति इस प्रकार के उच्च विचार रख सकता है, और उनका संकल्प पूर्वक पालन कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं कर सकता। और मैंने भी अपने जीवन में यही संकल्प ले लिया है। दो साल हो गए है, मुझे कभी कोई कमी नहीं पड़ी, अपेक्षा पहले से भी अधिक मिल रहा है।”

“यह अस्पताल मेरा है। तुम यहां मेरे मेहमान हो और तुम्हारे ही बताए हुए नियम के अनुसार मैं तुमसे कुछ भी नहीं ले सकता।”

“ये तो भगवान् की कृपा है कि उसने मुझे ऐसी प्रेरणा देने वाले व्यक्ति की सेवा करने का मौका मुझे दिया। “ऊपर वाले ने तुम्हारी मजदूरी का हिसाब रखा और वो हिसाब आज उसने चुका दिया। मेरी मजदूरी का हिसाब भी ऊपर वाला रखेगा और कभी जब मुझे जरूरत होगी, वो जरूर चुका देगा। “डॉक्टर ने मरीज से कहा ….

“तुम आराम से घर जाओ, और कभी भी कोई तकलीफ हो तो बिना संकोच के मेरे पास आ सकते हो। “मरीज ने जाते हुए चेंबर में रखी भगवान् कृष्ण की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर कहा कि….

“हे प्रभु ! आपने आज मेरे कर्म का पूरा हिसाब ब्याज समेत चुका दिया।”

सदैव याद रखें कि आपके द्वारा किये गए कर्म आपके पास लौट कर आते है । और वो भी ब्याज समेत ।वर्तमान में कठिन समय चल रहा है । जितना हो सकता है लोगों की मदद करें । आपका हिसाब ब्याज समेत वापस आएगा ।

कभी किसी की मजबूरी का फायदा उठाकर बलवान नहीं बन सकोगे इसके लिए सदैव याद रहे कि ईश्वर ही एक ऐसी सत्ता हैं जो पूरी सृष्टि का संचालन करने में सामर्थ्यवान हैं ।

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*सूरज योगी*


आप सभी का दिन शुभ हो 🙏🏻😊

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान Honesty and Selfrespect

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान (सत्य , निष्ठा , चरित्र, सच्चाई, विश्वास)

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

एक बार बाजार में चहलकदमी करते एक व्यापारी को व्यापार के लिए एक अच्छी नस्ल का ऊँट नज़र आया।( मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान Honesty and Selfrespect )

व्यापारी और ऊँट बेचने वाले ने वार्ता कर, एक कठिन सौदेबाजी की। ऊँट विक्रेता ने अपने ऊँट को बहुत अच्छी कीमत में बेचने के लिए, अपने कौशल का प्रयोग कर के व्यापारी को सौदे के लिए राजी कर लिया। वहीं दूसरी ओर व्यापारी भी अपने नए ऊँट के अच्छे सौदे से खुश था। व्यापारी अपने पशुधन के बेड़े में एक नए सदस्य को शामिल करने के लिए उस ऊँट के साथ गर्व से अपने घर चला गया।

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

घर पहुँचने पर, व्यापारी ने अपने नौकर को ऊँट की काठी निकालने में मदद करने के लिए बुलाया। भारी गद्देदार काठी को नौकर के लिए अपने बलबूते पर ठीक करना बहुत मुश्किल हो रहा था।

काठी के नीचे नौकर को एक छोटी मखमली थैली मिली, जिसे खोलने पर पता चला कि वह कीमती गहनों से भरी हुई है।

नौकर अति उत्साहित होकर बोला, “मालिक आपने तो केवल एक ऊँट ख़रीदा। लेकिन देखिए इसके साथ क्या मुफ़्त आया है?”

अपने नौकर के हाथों में रखे गहनों को देखकर व्यापारी चकित रह गया। वे गहने असाधारण गुणवत्ता के थे, जो धूप में जगमगा और टिमटिमा रहे थे।

व्यापारी ने कहा, “मैंने ऊँट खरीदा है,” गहने नहीं! मुझे इन जेवर को ऊँट बेचने वाले को तुरंत लौटा देना चाहिए।”

नौकर हतप्रभ सा सोच रहा था कि उसका स्वामी सचमुच मूर्ख है! वो बोला, “मालिक! इन गहनों के बारे में किसी को पता नहीं चलेगा।”

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

फिर भी, व्यापारी वापस बाजार में गया और वो मखमली थैली ऊँट बेचने वाले को वापस लौटा दी।

ऊँट बेचने वाला बहुत खुश हुआ और बोला, “मैं भूल गया था कि मैंने इन गहनों को सुरक्षित रखने के लिए ऊँट की काठी में छिपा दिया था। आप, पुरस्कार के रूप में अपने लिए कोई भी रत्न चुन सकते हैं।”

व्यापारी ने कहा “मैंने केवल ऊँट का सौदा किया है, इन गहनों का नहीं। धन्यवाद, मुझे किसी पुरस्कार की आवश्यकता नहीं है।” ( मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान Honesty and Selfrespect )

व्यापारी ने बार बार इनाम के लिए मना किया, लेकिन ऊँट बेचने वाला बार बार इनाम लेने पर जोर डालता रहा।

अंत में व्यापारी ने झिझकते और मुस्कुराते हुए कहा, “असल में जब मैंने थैली वापस आपके पास लाने का फैसला किया था, तो मैंने पहले ही दो सबसे कीमती गहने लेकर, उन्हें अपने पास रख लिया।”

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

मेरी ईमानदारी मेरा स्वाभिमान

इस स्वीकारोक्ति पर ऊँट विक्रेता थोड़ा स्तब्ध था और उसने झट से गहने गिनने के लिए थैली खाली कर दी।

वह बहुत आश्चर्यचकित होकर बोला “मेरे सारे गहने तो इस थैली में हैं! तो फिर आपने कौन से गहने रखे ?

“दो सबसे कीमती वाले” व्यापारी ने जवाब दिया।

“मेरी ईमानदारी और मेरा स्वाभिमान”

आप एक छोटे बच्चे को सत्यनिष्ठा कैसे सिखाएँगे?

रोजर जेनकिंस ने इसे इस रूप में समझाया है, “सही काम करने की क्षमता या सही काम करने का चयन करने की क्षमता, आपको गलत काम करने से दूर रख सकती हैं।”

“इंसान के मन की संतुलित दशा उसके द्वारा विभिन्न परिस्थितियों में की गई सारी गतिविधियों में उसके सही मनोभाव की अभिव्यक्ति है। एक व्यापक अर्थ में, यह उसके चरित्र का प्रतिबिम्ब है।” चरित्र ही एक ऐसा अनमोल रतन है जिससे हम जिन्दीभार अपनों के बीच अपने स्वाभिमान के साथ जीवन जी सकते ही अगर हमारा चरित्र सही नहीं है तो हमारे पास करोड़ो की सम्पति होते हुए भी हम इज्जत के साथ जिंदगी नहीं जी सकते है,

चाहते तो व्यापारी उस गहने को अपने पास रख सकते थे लेकिन उनका स्वाभिमान इस बात  की इज्जाजत नहीं दिया, सबसे पहला रतन ईमानदारी की और फिर स्वाभिमान की, लोभ करने से ईमानदारी तो जावेगी ही साथ में स्वाभिमान तो रहेगी भी नहीं।

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ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

ऋषि और चूहा The Sage and The माउस की कहानी  :

ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

एक वन में एक ऋषि रहते थे. उनके डेरे पर बहुत दिनों से एक चूहा भी रहता आ रहा था. यह चूहा ऋषि से बहुत प्यार करता था. जब वे तपस्या में मग्न होते तो वह बड़े आनंद से उनके पास बैठा भजन सुनता रहता. यहाँ तक कि वह स्वयं भी ईश्वर की उपासना करने लगा था. लेकिन कुत्ते-बिल्ली और चील-कौवे आदि से वह सदा डरा-डरा और सहमा हुआ सा रहता.*

एक बार ऋषि के मन में उस चूहे के प्रति बहुत दया आ गयी. वे सोचने लगे कि यह बेचारा चूहा हर समय डरा-सा रहता है, क्यों न इसे शेर बना दिया जाए. ताकि इस बेचारे का डर समाप्त हो जाए और यह बेधड़क होकर हर स्थान पर घूम सके. ऋषि बहुत बड़ी दैवीय शक्ति के स्वामी थे. उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर उस चूहे को शेर बना दिया और सोचने लगे कि अब यह चूहा किसी भी जानवर से नहीं डरेगा और निर्भय होकर पूरे जंगल में घूम सकेगा.*

लेकिन चूहे से शेर बनते ही चूहे की सारी सोच बदल गई. वह सारे वन में बेधड़क घूमता. उससे अब सारे जानवर डरने लगे और प्रणाम करने लगे. उसकी जय-जयकार होने लगी. किन्तु ऋषि यह बात जानते थे कि यह मात्र एक चूहा है, वास्तव में शेर नहीं है.*

अतः ऋषि उससे चूहा समझकर ही व्यवहार करते. यह बात चूहे को पसंद नहीं आई कि कोई भी उसे चूहा समझ कर ही व्यवहार करे. वह सोचने लगा की ऐसे में तो दूसरे जानवरों पर भी बुरा असर पड़ेगा. लोग उसका जितना मान करते हैं, उससे अधिक घृणा और अनादर करना आरम्भ कर देंगे.*

अतः चूहे ने सोचा कि क्यों न मैं इस ऋषि को ही मार डालूं. फिर न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी. यही सोचकर वह ऋषि को मारने के लिए चल पड़ा. ऋषि ने जैसे ही क्रोध से भरे शेर को अपनी ओर आते देखा तो वे उसके मन की बात समझ गये. उनको शेर पर बड़ा क्रोध आ गया.*

अतः उसका घमंड तोड़ने के लिए  ऋषि ने अपनी दैवीय शक्ति से उसे एक बार फिर चूहा बना दिया.*

शिक्षा:-* ऋषि और चूहा The Sage and The Mouse

दोस्तों! हमें कभी भी अपने हितैषी का अहित नहीं करना चाहिए, चाहे हम कितने ही बलशाली क्यों न हो जाए. हमें उन लोगों को हमेशा याद रखना चाहिए जिन्होंने हमारे बुरे वक्त में हमारा साथ दिया होता है. इसके अलावा हमें अपने बीते वक्त को भी नहीं भूलना चाहिए. चूहा यदि अपनी असलियत याद रखता तो उसे फिर से चूहा नहीं बनना पड़ता. बीता हुआ समय हमें घमंड से बाहर निकालता है..!!

इसके परे आज कल की दुनिया में इसके विपरीत या व्यापारिक स्पर्धा में देखा जाता है की आप जिस भी व्यक्ति को हाथ पकड़कर ऊपर ले जाते है वही व्यक्ति आपको धोखा दे जाते है ऐसा हर केस में नहीं होता है पर अधिक से अधिक केस में देखा जाता है।

पौराणिक कहानी में भी जब भगवन शिव जी ने भस्मासुर को इस बात का वरदान दे दिया की तुम जिस किसी के भी सर पर हाथ रखोगे वह जल के भस्म हो जायेगा और फिर किया हुआ वह भस्मासुर भगवान शिव को ही टारगेट कर लिया और फिर भगवान शिव को भी उससे भयभीत होकर भागना पड़ा। अतः किसी को कोई भी पावर देने से पहले यह तय कर लेना चाहिए की किया वह व्यक्ति उस पावर के पात्र है या भी नहीं।

जिस भी व्यक्ति ने आपको कठिन समय में मदद किया है उस व्यक्ति का कभी भी अहित नहीं करना चाहिए ।

*🙏प्रणाम*🙏
🙏बोलो जय सीताराम🙏

*सूरज योगी*

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निष्ठा पूर्वक नियत कर्म का फल A MAN IS GREAT WHOSE DUTY IS GREAT

निष्ठा पूर्वक नियत कर्म का फल A MAN IS GREAT WHOSE DUTY IS GREAT

निष्ठा पूर्वक नियत कर्म का फल

कौशिक नामक एक ब्राह्मण बड़ा तपस्वी था। तप के प्रभाव से उसमें बहुत आत्म बल आ गया था। एक दिन वह वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था कि ऊपर बैठी हुई चिड़िया ने उस पर बीट कर दी। कौशिक को क्रोध आ गया। लाल नेत्र करके ऊपर को देखा तो तेज के प्रभाव से चिड़िया जल कर नीचे गिर पड़ी।

ब्राह्मण को अपने बल पर गर्व हो गया। दूसरे दिन वह एक सद्गृहस्थ के यहाँ भिक्षा माँगने गया। गृहस्वामिनी पति को भोजन परोसने में लगी थी। उसने कहा, “भगवन् ! थोड़ी देर ठहरो अभी आपको भिक्षा दूँगी।” इस पर ब्राह्मण को क्रोध आया कि मुझ जैसे तपस्वी की उपेक्षा करके यह पति-सेवा को अधिक महत्व दे रही है, लेकिन उस पत्नी के लिए अपने पति की सेवा ही नियत कर्म है ।

A MAN IS GREAT WHOSE DUTY IS GREAT निष्ठा पूर्वक नियत कर्म का फल

गृहस्वामिनी ने दिव्य दृष्टि से सब बात जान ली। उसने ब्राह्मण से कहा, “क्रोध न कीजिए मैं चिड़िया नहीं हूँ। अपना नियत कर्तव्य पूरा करने पर आपकी सेवा करूँगी।” ब्राह्मण क्रोध करना तो भूल गया, उसे यह आश्चर्य हुआ कि चिड़िया वाली बात इसे कैसे मालूम हुई ?

ब्राह्मणी ने इसे पति सेवा का फल बताया और कहा कि इस संबंध में अधिक जानना हो तो मिथिलापुरी में तुलाधार वैश्य के पास जाइए। वे आपको अधिक बता सकेंगे। भिक्षा लेकर कौशिक चल दिया और मिथिलापुरी में तुलाधार के घर जा पहुँचा।

वह तौल-नाप के व्यापार में लगा हुआ था। उसने ब्राह्मण को देखते ही प्रणाम अभिवादन किया और कहा, “तपोधन कौशिक देव ! आपको उस सद्गृहस्थ गृहस्वामिनी ने भेजा है सो ठीक है। अपना नियत कर्म कर लूँ तब आपकी सेवा करूँगा। कृपया थोड़ी देर बैठिये।“ ब्राह्मण को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मेरे बिना बताये ही इसने मेरा नाम तथा आने का उद्देश्य कैसे जाना ?

थोड़ी देर में जब वैश्य अपने कार्य से निवृत्त हुआ तो उसने बताया कि मैं ईमानदारी के साथ उचित मुनाफा लेकर अच्छी चीजें लोक-हित की दृष्टि से बेचता हूँ। इस नियत कर्म को करने से ही मुझे यह दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई है। अधिक जानना हो तो मगध के निजाता चाण्डाल के पास जाइये। कौशिक मगध चल दिये और चाण्डाल के यहाँ पहुँचे।

वह नगर की गंदगी झाड़ने में लगा हुआ था। ब्राह्मण को देखकर उसने साष्टाँग प्रणाम किया और कहा, “भगवन् ! आप चिड़िया मारने जितना तप करके उस सद्गृहस्थ देवी और तुलाधार वैश्य के यहाँ होते हुये यहाँ पधारे यह मेरा सौभाग्य है। मैं नियत कर्म कर लूँ, तब आपसे बात करूँगा। तब तक आप विश्राम कीजिये।” ब्राह्मण भी इस सोच में पड़ गया की ये कैसे संभव है की मेरे जाने से पहले उस व्यक्ति को मेरे आने का कारण पता है।

चाण्डाल जब सेवा-वृत्ति से निवृत्त हुआ तो उन्हें संग ले गया और अपने वृद्ध माता पिता को दिखाकर कहा, “अब मुझे इनकी सेवा करनी है। मैं नियत कर्त्तव्य कर्मों में निरन्तर लगा रहता हूँ इसी से मुझे दिव्य दृष्टि प्राप्त है। अच्छे कार्य करने से हमें समझदारी मिलती है।

तब कौशिक की समझ में आया कि केवल तप साधना से ही नहीं, नियत कर्त्तव्य, कर्म निष्ठापूर्वक करते रहने से भी ‘आध्यात्मिकता का लक्ष्य’ पूरा हो सकता है और सिद्धियाँ मिल सकती हैं।

सार : निष्ठा पूर्वक नियत कर्म का फल

यानि कि कभी भी अपनी सिद्धियों पर घमंड नहीं करनी चाहिए यह संसार ज्ञान से परिपूर्ण है और यहाँ पर तप और साधना करने वालो कि कोई भी कमी नहीं ये संसार अद्भुत है । यह दुनिया ऐसे लोगो से भरे पड़े है जहाँ दुनिया का कोई भी ऐसा काम नहीं है जो इस दुनिया के कोई न कोई कर सकता है । आवश्यकता है केवल उन प्रतिभा को बाहर लाने की जो की आज भी किसी के सहायता के इंतजार में है ।

निष्ठा पूर्वक नियत कर्म का फल A MAN IS GREAT WHOSE DUTY IS GREAT

 

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