न त्वहं कामये राजयं

न त्वहं कामये राजयं ,  न स्वर्गं न पुनर्भवम् ।

कामये दुःख तप्तानां , प्राणि प्राणिनामार्ति नाशनम।।

भावार्थ : मैं राज्य की कामना नहीं करता, मुझे स्वर्ग और मोक्ष नहीं चाहिए । दुःख से पीड़ित प्राणियों के दुःख दूर करने में सहायक हो सकूँ, यही मेरी कामना है।

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न्यायोपार्जित वित्तस्य

न्यायोपार्जित वित्तस्य , दशमांशेन धीमतः ।

कर्तव्यों विनियोगश्च , ईश्वर प्रीतयथरमेव च ।।

भावार्थ : न्याय से कमाया धन भी पवित्र तब होता है, जब उसका दसवां भाग प्रेमपूर्वक ईश्वर को समर्पित कर दिया जाता है । 

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सत्यं रूपं श्रुतं विद्या

सत्यं रूपं श्रुतं विद्या , कौल्यं शीलं बलं धनं।

शौर्य च चित्रभाष्यं च दशेमे स्वर्गयोनय : ।।

भावार्थ : विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा – राजन ! सत्य, विनय की मुद्रा, शस्त्रज्ञान, विद्या कुलीनता , शील, बल, धन, शूरता, और चमत्कारपूर्ण  बात कहना – ये दस स्वर्ग के हेतु है ।

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