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रामलला की पोशाक

रामलला की पोशाक

प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला की पोशाक कर रही है जनमानस को मोहित

जयपुर। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा तो हो गई, ‘रामलला’ अपनी सौम्य श्यामल छवि रूप में विराजमान भी हो गए है। लोगों के भीतर का उत्साह अब भी जस का तस बना हुआ है। पहले जहां प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई हरेक छोटी से छोटी जानकारी को लेकर उनमें जिज्ञासा देखी जा रही थी वहीं अब यह जिज्ञासा रामलला की पोशाक, गहने, भोग, आरती और दर्शन को लेकर बनी हुई है।

इन सब में भी रामलला की पोशाक सबसे अधिक मोहित कर रही है। रोज बदलती पोशाक देखकर भक्त आल्हादित हो रहे हैं। वे ये जानने में भी अधिक रूचिकर हैं, आखिरकार रामलला की पोशाक यानी उनका ‘ड्रेस डिजाइनर’ कौन है? किसने इस पीतांबरी वस्त्र का चयन किया? कहां पर इसे तैयार किया गया है?

करोड़ों रामभक्तों की नजरें प्रभु श्री राम के पीत स्वर्ण वस्त्रों पर टिकी और सोशल मीडिया व नेट के सर्च इंजन में लोगों ने अलग—अलग तरीकों से रामलला की पोशाक के बारे में जानकारी ली।

असल में अयोध्या में स्थापित रामलला की मूर्ति की पोशाक तैयार करने वाले डिजाइनर लखनऊ के मनीष त्रिपाठी है। जो स्वयं पोशाक बनाने के बाद अचंभित है। उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था कि वे एक दिन प्रभु श्री राम के लिए पोशाक डिजाइन करेंगे। हालांकि उनके सामने ये सबसे बड़ी चुनौती भी रही। पोशाक सबसे अलग और एक राजवंशी घराने के राजकुमार की भव्यता की तरह लगे।

वे मानते हैं कि ”उन पर राम की ही कृपा हुई है, यही वजह रही कि वे उनके लिए इतनी सुंदर पोशाक डिजाइन कर सके हैं। साथ ही उन करोड़ों भारतीयों की आस्था और आशीर्वाद भी रहा जब वे उनके भरोसे पर खरे उतरे।”

काशी में तैयार हुआ ‘पीतांबरी’— रामलला की पोशाक

रामलला की पोशाक

रामलला की पोशाक

पोशाक बनाने के लिए जिस जरूरी पीले और लाल वस्त्र की आवश्यकता थी वो काशी में तैयार किया गया है। इसकी सबसे बड़ी बात ये हैं कि, इसे तैयार करने में रेशम के साथ ही सोने और चांदी के तार का उपयोग किया गया है।

इनके लिए भी बनाई ड्रेस— रामलला की पोशाक

मनीष त्रिपाठी ने रामलला की पोशाक बनाने से पहले इंडियन क्रिकेट टीम, भारतीय सुरक्षा बल और भारतीय सेना के बुलेट प्रूफ जैकेट का डिजाइन भी तैयार किया है।

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घुमंतूबस्ती में रामोत्सव 1

घुमंतूबस्ती में रामोत्सव

घुमंतूबस्ती में रामोत्सव

घुमंतू बस्तियों में भी छाया रामोत्सव का उल्लास श्री राम महायज्ञ में आहुतियां अर्पित कर लिया राम राज्य लाने का संकल्प जयपुर। राम लला की प्राण उतिष्ठा का दिन मंदिरों और घरों में ही नहीं घुंमुतु बस्तियों में भी धूमधाम से मनाया गया। घुमंतु जाति उत्थान न्यास की ओर से विभिन्न बस्तियों में हनुमान चालीसा पाठ, सुंदर कांड, महा आरती, दीपदान सहित विभिन्न कार्यक्रम हुए। घुमंतूबस्ती में रामोत्सव

मुख्य आयोजन वीकेआई रोड नंबर 17 के आकेड़ा डूंगर स्थित घुमंतू जाति बस्ती में रामोत्सव के रूप में हुआ। मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घुमंतू कार्य के अखिल भारतीय प्रमुख दुर्गादास ने राम लला के चित्रपट के समक्ष दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ कर सभी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की शुभकामनाएं दीं।

उन्होंने कहा कि पांच सौ साल के संघर्ष और बलिदान के बाद आज देश को दीपोत्सव मनाने का अवसर प्राप्त हुआ है।

विशिष्ट अतिथि निम्स यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ पंकज सिंह, इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष सर्वेश्वर शर्मा थे।
घुमंतू कार्य के महानगर प्रमुख राकेश शर्मा ने बताया कि राममय माहौल में हनुमान चालीसा पाठ और भजन कीर्तन के कार्यक्रम हुए। अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के विद्वानों की टोली ने नौ कुंडीय गायत्री-श्रीराम महायज्ञ में विश्व कल्याणार्थ आहुतियां अर्पित करवाई।
बस्ती के लोगों ने सपरिवार राम गायत्री महामंत्र से आहुतियां अर्पित की।

व्यासपीठ से मनोज पारीक और उमाशंकर खंडेलवाल ने कहा कि राम इस देश के प्राण है। संस्कृति का आधार है। सभी ने इस मौके पर एक बार फिर से राम राज्य लाने का संकल्प लिया। सभी लोगों को प्रसाद स्वरूप वेद माता गायत्री का चित्र, गायत्री चालीसा भेंट की। बस्ती में संचालित बाल संस्कारशाला के बच्चों को कॉपी और स्टेशनरी भेंट की।

इस अवसर पर निम्स हॉस्पिटल की ओर से निशुल्क चिकित्सा शिविर आयोजित किया गया। बड़ी संख्या में लोगों ने चिकित्सा शिविर का लाभ उठाया। अंत में भंडारा प्रसादी हुई। भगवान जय श्री राम की जयकारों के साथ करीब 600 लोगों ने पंगत प्रसादी ग्रहण की।

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फूलों से बनेगी ‘कम्पोस्ट खाद’ 1

फूलों से बनेगी 'कम्पोस्ट खाद'

अब छोटी काशी के मंदिरों में चढ़ने वाले फूलों से बनेगी ‘कम्पोस्ट खाद’

प्रमुख मंदिरों से प्रतिदिन औसतन तीन हजार किलो फूल निकलते हैं -फूलों से बनेगी ‘कम्पोस्ट खाद’

फूलों से बनेगी 'कम्पोस्ट खाद'

फूलों से बनेगी ‘कम्पोस्ट खाद’

जयपुर। छोटी काशी जयपुर के मंदिरों में चढ़ने वाले फूल और मालाओं से अब ‘कम्पोस्ट खाद’ बनाई जाएगी। जयपुर ग्रेटर नगर निगम ने यह बीडा उठाया है। शुरुआत बड़े मंदिरों से की जाएगी। इसके लिए चयनित स्थान पर ‘कंपोस्टर मशीनें’ लगाई जाएगी।

जयपुर के प्रमुख बीस बड़े मंदिरों की बात करें तो प्रतिदिन एक मंदिर से औसतन डेढ़ सौ किलो फूल व मालाएं निकल रही हैं। इस हिसाब से तीन हजार किलो फूल व मालाएं रोजाना भगवान को चढ़ाई जा रही है। यानी कि 3 टन प्रतिदिन। जबकि विशेष दिन, तीज व त्यौहारों में ये आंकड़ा बढ़ जाता है।

इसे देखते हुए ग्रेटर नगर निगम ने भक्तों की आस्था को बनाए रखने के लिए एक सराहनीय पहल करते हुए इन फूल व मालाओं से कम्पोस्ट खाद बनाने का निर्णय लिया हैं। इसकी शुरुआत कुछ चुनिंदा मंदिरों से की जाएगी।

इस निर्णय के बाद ये कहा जा सकता है कि,’छोटी काशी’ की सड़कों व कचरा पात्रों में अब भगवान की मूर्तियों पर चढ़ी हुई मालाएं व फूल यूं ही नहीं फेंक दिए जाएंगे। बल्कि मंदिरों में चढ़ने वाले फूल व मालाएं अब जल्द ही कम्पोस्ट खाद बनकर निकलेंगे। शुरुआती चरण में प्रमुख बड़े मंदिरों के फूलों का उपयोग खाद बनाने में किया जाएगा।

इसके बाद बाकी मंदिरों से भी इन फूलों को इकट्ठा करके खाद बनाई जाएगी। ये खाद पौधों में डलकर पुन: हरियाली करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देगी।

फूलों से बनेगी 'कम्पोस्ट खाद'

फूलों से बनेगी ‘कम्पोस्ट खाद’

खाद बनाने के लिए विशेष ‘कंपोस्टर मशीन’ लगाई जाएगी। जिसके लिए स्थान चयनित किए जाएंगे। हालांकि निगम ये शुरुआत कुछ चुनिंदा मंदिरों से ही करने जा रहा है। इसके लिए शहर के संत- महंतों से सुझाव मांगे हैं।

जिसे संत-महंतों ने स्वीकार कर लिया है। कम्पोस्ट मशीन एक बार में कितने फूलों से खाद बना सकेगी इस बारे में तकनीकी टीम निगम को इसकी क्षमता से जुड़ी हुई जानकारी देगी।

नगर निगम की मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर कहती हैं- ”शहर के संत-महंतों को इस संबंध में सुझाव दिया गया है। जिसे संत-महंतों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया है। फिलहाल निगम की ओर से चिह्नित जगहों पर कम्पोस्ट खाद बनाने की सहमति दे दी गई है।

शुरुआत प्रमुख मंदिरों से की जाएगी जिसमें मोती डूंगरी गणेश व झारखंड महादेव जैसे मंदिर शामिल होंगे। प्रारंभिक चरण में दो कम्पोस्ट मशीनें लगाई जाएगी। अभी तकनीकी विशेषज्ञों की टीम से बात चल रही है। जो ये बताएंगे कि, एक मशीन एक बार में कितने फूलों को कम्पोस्ट करने में सक्षम होगी।”

नगर निगम की इस अभिनव पहल का प्रमुख मंदिरों के महत्व ने स्वागत किया है। इस संबंध में मोती डूंगरी गणेश मंदिर के महंत कैलाश शर्मा ने कहा- निगम का सुझाव हमने भी मान लिया है। हम भी अपने क्षेत्र में मालाओं से कंपोस्ट खाद बनाएंगे। इसके लिए नगर निगम को मंदिर की ओर से एक कंपोस्ट खाद बनाने की मशीन भी देंगे।

नरवर आश्रम सेवा समिति, खोले के हनुमान मंदिर के महामंत्री बीएम शर्मा ने कहा फूलों से कम्पोस्ट खाद बनाने की पहल स्वागत योग्य है। सुझाव पर सहमति बन गई है। अब जैसे ही स्थान तय हो जाएगा, फूलों से खाद बनाने का काम भी शुरू हो जाएगा और इससे फूलो से होने वाले रोड इत्यादि पर कचरा से भी निजात मिलेगी।

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शुभ घड़ीमें विराजे राम

शुभ घड़ीमें विराजे राम

शुभ घड़ीमें विराजे राम

शुभ घड़ीमें विराजे राम रघुराई…

-84 सेकेंड के अभिजीत मुहूर्त में हुई ‘रामलला’ मूर्ति की प्राण—प्रतिष्ठा

-देशवासियों के छलके आंसू जब देखी राम की सौम्य,अद्भुत छवि
-प्रतिष्ठा समारोह में दिखी सामाजिक समरसता

जयपुर। सदियों से भारतवासियों को जिस घड़ी की प्रतीक्षा थी, वो आखिरकार 22 जनवरी के विशेष शुभ मुहूर्त में साकार हो गई। अवध नगरी के मुख्य मंदिर में ‘रामलला’ अपने सौम्य श्यामल बाल स्वरूप में विराजित हुए। राम के माथे का तिलक और उनकी सौम्य मुद्रा, देखने वालों की आंखों में बस गई। राम लला के चेहरे की मुस्कान ने मन को मोह लिया।

ये अद्भुत और अलौकिक दृश्य देख पूरा देश भावुक हो उठा और ये भावनाएं आंसुओं के साथ छलक पड़ी। ये ही वो क्षण भी था जहां पर ‘सामाजिक समरसता’ भी दिखाई दी।

पिछले 500 वर्षो का इतिहास देखा जाए तो राम मंदिर की प्राण- प्रतिष्ठा उस विश्वास की विजय हैं, जिसमें असंख्य बलिदानियों का संघर्ष छुपा है किंतु अपने राम के प्रति गहरी आस्था थी जो, उस 84 सेकेंड के शुभ मुहूर्त में जीवंत हो उठी जब ‘रामलला’ मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई।

अनुष्ठान के बाद हुई पहली आरती— शुभ घड़ीमें विराजे राम

प्रभु श्री राम के पांच साल के बाल स्वरूप मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ी सभी जरूरी पूजा विधि दोपहर 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकेंड से लेकर 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड के अभिजीत मुहूर्त में मंत्रोच्चार के बीच हुई। अनुष्ठान के बाद पहली आरती भी संपन्न हुई। इस दौरान सर्वार्थ सिद्धि योग,अमृत सिद्धि योग,रवि योग और मृगशिरा नक्षत्र का दुर्लभ संयोग बना जो अत्यंत शुभ माना जाता है।

गूंजी ‘मंगल ध्वनि’ और बज उठे वाद्ययंत्र—
प्राण प्रतिष्ठा के लिए न्यूनतम विधि- अनुष्ठान ही रखे गए थे। समारोह की शुरुआत अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर सुबह दस बजे से ‘मंगल ध्वनि’ के भव्य वादन के साथ हुई। विभिन्न राज्यों के 50 से अधिक मनोरम वाद्ययंत्र लगभग दो घंटे तक इस शुभ घटना के साक्षी बनें।

मूर्ति की विशेषता— शुभ घड़ीमें विराजे राम

शुभ घड़ीमें विराजे राम

शुभ घड़ीमें विराजे राम

रामलला की मूर्ति में बालत्व, देवत्व और एक राजकुमार तीनों की छवि दिखाई दे रही है। मूर्ति का वजन करीब 200 किलोग्राम है। इसकी कुल ऊंचाई 4.24 फीट, जबकि चौड़ाई तीन फीट है। कमल दल पर खड़ी मुद्रा में मूर्ति, हाथ में तीर और धनुष है। कृष्ण शैली में मूर्ति बनाई गई है। मूर्ति के ऊपर स्वास्तिक, ॐ, चक्र, गदा और सूर्य देव विराजमान हैं।

रामलला के चारों ओर आभामंडल है। मस्तक सुंदर, आंखें बड़ी और ललाट भव्य है। मूर्ति में भगवान विष्णु के 10 अवतार दिखाई दे रहे हैं। मूर्ति का निर्माण श्याम शिला से हुआ है, जिसका रंग काला होता है। इस वजह से रामलला की मूर्ति श्यामल रूप में दिखाई दे रही है।

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शुभ घड़ीमें विराजे राम

शुभ घड़ीमें विराजे राम

कारसेवक नारायण उपाध्याय 13

कारसेवक नारायण उपाध्याय

कारसेवक नारायण उपाध्याय

कारसेवक नारायण उपाध्याय कारसेवक श्रंखला- 13

सुनिश्चित हो कि ‘वनवासी’ सुरक्षित घर लौटे… कारसेवक नारायण उपाध्याय

यह वो दौर था जब, मुलायम सरकार थी। उसने दम्भ पूर्वक घोषणा की थी कि, ”अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा।” हम जब नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन पहुंचे तब सोहन सिंह जी मिले, उन्होंने कहा कि नारायण , ”देखो तुम्हारे साथ क्षेत्र के भोले भाले वनवासी हैं, तुम्हें उनका पूरा ध्यान रखना है, यह सुनिश्चित करना है कि यह सभी सुरक्षित अपने घरों को लौटे।

तुम्हें एक कार्य करना होगा पूरे रास्ते चैकिंग और पूछताछ होगी। यदि पुलिस वालों को संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे। तुम्हें इस बात का ध्यान रखना है, जहां कहीं पर भी एक भी वनवासी बन्धु को गिरफ्तार कर लिया जाए तब आगे नहीं बढ़ना है, वहीं गिरफ्तारी दे देनी है लेकिन अपने साथी को छोड़ना नहीं।”

याद है मुझे वो दिन जब 1990 में मुझे जिला कार सेवा संयोजक की जिम्मेदारी मिली थी। मैं साढ़े चार सौ से अधिक कारसेवक साथियों जिनमें वनवासी बंधु भी शामिल थे, उनके साथ अयोध्या के लिए रवाना हुआ था। नए दायित्व के साथ अयोध्या पहुंचने की एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी मुझे। मेरे पास नई नई जिम्मेदारी आयी थी

कारसेवक नारायण उपाध्याय

कारसेवक नारायण उपाध्याय

इसीलिए सोहन सिंह जी ने मुझे बहुत ही गंभीरता के साथ समझाते हुए कहा था, उनकी इस सीख के साथ हम दिल्ली से आगे की ओर बढ़ चले। तभी मैंने देखा कि अलीगढ़ के समीप आते ही पुलिस की पूछताछ तेज हो गई। कुछ कारसेवक संतोषप्रद उतर नहीं दे पाए और वे गिरफ्तार कर लिए गए। इसके बाद हम सभी को गिरफ्तारी देनी ही थी।

इसके बाद सभी कारसेवकों ने जमकर नारे लगाना शुरू कर दिए ” राम लला हम आएंगे….।” यहां से हमें अलीगढ़ जेल भेजा गया। जेल में नौ दिन तक एक कैदी के रूप में रहे। पहले दो दिनों तक हमें काली दाल और मोटी रोटियां ही खाने को मिली। लेकिन ये राम की ही कृपा थी जब वहां भी हमें रामभक्त मिल गए, जिन्होंने अच्छे भोजन की व्यवस्था कर दी थी। जेल से छूटने के बाद हम सभी बांसवाड़ा पहुंचे।

मुझे 1992 में हुई कारसेवा में जाने का भी अवसर मिला। उस समय मैं राजसमंद में वकालत कर रहा था। यहां से लगभग 30 कारसेवकों का एक जत्था 2 दिसंबर 1992 को रवाना होकर 4 दिसंबर को अयोध्या पहुंचा था। उस समय हमारे जत्थे का नेतृत्व कांकरोली के दिनेश जी पालीवाल कर रहे थे।

6 दिसंबर की सुबह रामलला के स्थान के पास वाले मैदान पर चल रही सभा में भीड़ जुटने लगी थी। सभा में स्व. अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतम्भरा,साध्वी उमा भारती,आचार्य धर्मेंद्र आदि मंच पर थे। सुबह लगभग साढ़े दस बजे का समय था जब, आडवाणी जी भाषण कर रहे थे। तभी अचानक से हौ हल्ला मच गया। चारों तरफ भगदड़ मची हुई थी। आडवाणी जी मंच से भीड़ को अनियंत्रित होने से रोक रहे थे लेकिन भीड़ बेकाबू थी, किसी ने उनकी नहीं सुनी।

मंच पर साध्वी ऋतम्भरा और उमाभारती ने भी मोर्चा सम्हाला। मैं इस दिन और इस क्षण को कभी नहीं भूल सकता। शायद उसी की परिणिति हैं, जो आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन पाया है। आज श्री राम मंदिर बनाने के उन सभी के सपने पुरे हुए |

वो अद्भुत दृश्य था जिसका मैं साक्षी हूं। मैंने देखा कि,कारसेवकों के हाथों में मूर्तियां थी जिसे वे बाहर लेकर आ रहे थे। जिसे अस्थाई चबूतरे पर विराजित किया गया। आज प्रभु श्री राम अपने भव्य मंदिर में विराजमान हो गए हैं। जीवन में इससे सुखद क्षण मेरे लिए क्या हो सकता है।

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कारसेवक नारायण उपाध्याय

कारसेवक नारायण उपाध्याय

संघ के सरसंघचालक डॉ. भागवत -1

संघ के सरसंघचालक डॉ. भागवत

संघ के सरसंघचालक डॉ. भागवत बुधवार को जयपुर प्रवास पर

 

जयपुर, 17 जनवरी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. भागवत /डॉक्टर मोहन राव भागवत बुधवार को एक दिवसीय जयपुर एक विवाह समारोह में आएंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जयपुर विभाग प्रचार प्रमुख अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि सरसंघचालक डॉ. भागवत / डॉक्टर मोहन राव भागवत बुधवार शाम को ट्रेन द्वारा जयपुर पहुंचेंगे। वे यहां संघ के क्षेत्र संघचालक डॉक्टर रमेशचंद्र अग्रवाल के पुत्र के विवाह समारोह में सम्मलित होंगे। गुरुवार प्रातः डॉ. भगवात जयपुर से प्रस्थान करेंगे।

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PAPA BANAO DADI NANI KI RECIPE

PAPA BANAO DADI NANI KI RECIPE

पापा बनाओ दादी नानी की रेसिपी

पोद्दार जंबोकिड्स में मास्टर शेफ / PAPA BANAO DADI NANI KI RECIPE

जयपुर 16 जनवरी। शहर के पोदार जंबो किड्स, चित्रकूट में मास्टर शेफ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अभिभावकों और बच्चों ने बहुत उत्साह के साथ भाग लिया। पापा बनाओ (Papa BANao Dadi Nani Ki Recipe ) दादी नानी की रेसिपी थीम पर यह आयोजन किया गया।जिसमें विद्यालय के बच्चो ने अपने अभिभावको के हाथ विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए।मुख्य अतिथि सुनीता मिंगलानी ने बच्चों के लिए स्वस्थ टिफिन के लिए अपने सुझाव बताए।कार्यक्रम के अंत में विद्यालय की प्रधानाध्यापिका जागृति पाठक ने अभिभावकों की सहभागिता से कार्यक्रम को सफल बताते हुए अभिभावकों के प्रति आभार प्रकट किया

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समरसता के पोषक श्रीराम-1

समरसता के पोषक श्रीराम

समरसता के पोषक श्रीराम का “निज सिद्धान्त”

गीता में भगवान् स्वयं अपने अवतार धारण के तीन कारण बताते हैं; सज्जनों की रक्षा, दुर्जनों का विनाश और धर्म की संस्थापना। समरसता के पोषक श्रीराम  का अवतार भी असुरों के संहार और धर्म की स्थापना के लिए हुआ। जिस प्रकार सज्जनों की रक्षा के लिए दुर्जनों का विनाश अनिवार्य है उसी प्रकार धर्म की संस्थापना के धर्म का आचरण अनिवार्य है।

समरसता के पोषक श्रीराम इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं कि उन्होंने अपने शील और आचरण से धर्म की मर्यादा स्थापित की। वे सूत भर भी उस मर्यादा से विचलित नहीं हुए। उन्होंने व्यक्ति धर्म और समाज धर्म के मानदंड स्थापित किया। वैयक्तिक धर्म के रूप में उन्होंने आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श शिष्य और आदर्श राजा की मर्यादाओं का पालन किया। सामाजिक धर्म के रूप में राम का मूल आधार सामाजिक समरसता था।

सामाजिक समरसता का अर्थ है अपने वर्ग, जाति और समुदाय से भिन्न लोगों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार। “अन्य” के प्रति प्रेम और आत्मीयता पूर्ण व्यवहार ही सामाजिक समरसता है। राम राजपुत्र थे, उच्च वर्ण में जन्मे थे, किन्तु समाज में हीन और निम्न कहे जाने वाले समुदाय के लोग उनके सर्वाधिक प्रिय पात्र रहे।

राम की इस विलक्षणता को बताते हुए तुलसीदास विनयपत्रिका में कहते हैं, हे राम! आपकी यही तो बड़ाई है कि आप गण्य–मान्यों, धनिकों की अपेक्षा गरीबों को अधिक आदर देते हो।
“रघुवर रावरि यहै बड़ाई।
निदरि गनी आदर गरीब पर,
करत कृपा अधिकाई।।”

राम इसलिए सबसे बड़े हैं कि वे सर्वाधिक चिंता छोटे और निचले स्तर के लोगों की करते हैं। वे सबल की अपेक्षा निर्बल का, बड़े की अपेक्षा छोटे का, ऊंँचे की अपेक्षा नीचे का, अमीर की अपेक्षा गरीब का पक्ष लेते हैं।

सुग्रीव भले ही बहुत नैतिक व्यक्ति नहीं था। बाली की तरह वह भी आचरणगत दुर्बलताओं से ग्रस्त था। पर बाली के मुकाबले दुर्बल एवं बाली का सताया हुआ प्राणी था। इसी कारण राम सुग्रीव के साथ खड़े होते हैं। अहल्या शापित और उपेक्षित स्त्री थी। सामाजिक उपेक्षाओं और तिरस्कारों के कारण वह पथरा गई थी। राम उसकी भी सुध लेते हैं।

विभीषण जैसा सदाचारी व्यक्ति अपने ही कुल के दुराचारियों के मध्य ऐसे जीवनयापन कर रहा था, जैसे दांतों के बीच में जीभ रहती हो। हनुमान से प्रथम भेंट पर ही वह अपना दुखड़ा रो देता है। “सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥” राम उसको भी अपनी शरण में ले लेते हैं।

यह भरोसा ही संकट में पड़े हुए कोटि–कोटि जन को सम्बल देता है और उनके मुंँह से सबसे पहले यही प्रार्थना निकलती है, “दीन दयाल विरदु संभारी। हरहुंँ नाथ मम संकट भारी।।

अध्यात्म रामायण के शबरी प्रसंग में शबरी जब कहती है कि, हे राम! आपका दर्शन तो मेरे गुरुदेव को भी नहीं हुआ, मेरी तो औकात ही क्या है? मैं तो नीच जाति में उत्पन्न हुई एक गंँवार स्त्री हूं; तो प्रत्युत्तर में राम कहते हैं कि “मेरी भक्ति में न पुरुष–स्त्री का लिंगभेद कारण है, न जाति, न नाम और न आश्रम। भक्ति की भावना ही मेरी भक्ति में कारण है।”

“पुंस्त्वे स्त्रीत्वे विशेषो वा जातिनामाश्रमादय:।
न कारणं मद्भजने भक्तिरेव हि कारणम्।।”

(अरण्य काण्ड/दशम सर्ग/२०)
राम की यह ऐतिहासिक घोषणा भक्ति के क्षेत्र में सामाजिक समरसता का उज्ज्वल प्रमाण है।

तुलसीदास भी यही बात कहते हैं।
“कह रघुपति सुनु भामिनी बाता। मानऊंँ एक भगति कर नाता।। जाति पांँति कुल धर्म बडाई। धन बल परिजन गुन चतुराई।….”
राम की भेदभाव रहित भावना का रोमांचक वर्णन तुलसीदास मानस में निषादराज से भेंट के प्रसंग में करते हैं।

एक चक्रवर्ती सम्राट और एक महान् ऋषि से एक अछूत केवट की भेंट का जो वर्णन अयोध्या कांड में मिलता हैं, वह हमारी आंँखें खोल देने वाला दृश्य है। निषाद तो इतना अस्पृश्य है कि उसकी छाया के छू जाने मात्र पर लोग पानी का छींटा लेते हैं। लोकव्यवहार में भी और शास्त्रों के अनुसार भी उसे सब नीच ही मानते हैं।

उस अछूत को दण्डवत करते देख भरत उसको उठा कर अपने हृदय से लगा लेते हैं, मानो अपने भाई लक्ष्मण से मिल रहे हों।
“लोक बेद सब भाँतिहिं नीचा। जासु छाँह छुइ लेइअ सींचा॥ तेहि भरि अंक राम लघु भ्राता। मिलत पुलक परिपूरित गाता॥”…..
“करत दण्डवत देखि तेहि, भरत लीन्ह उर लाइ।
मनहुँ लखन सन भेंट भई, प्रेम न हृदय समाइ।।”

और जब इसी अछूत की वशिष्ठ ऋषि से भेंट होती है, तो यह छोटा सा मिलन-दृश्य एक युगान्तकारी घटना बन जाता है। सामने से वशिष्ठ ऋषि को आते देख निषाद प्रेम में भर उठता है। किन्तु लोक प्रचलित मर्यादा के बंँधा होने के कारण वह एक उचित दूरी रखते हुए, दूर से ही अपना नाम पुकार कर दण्डवत प्रणाम करता है। महर्षि वशिष्ठ सारी लोकरूढ़ियों को ध्वस्त करते हुए नीची जाति में जन्मे इस रामसखा को स्वयं आगे बढ़कर गले से लगा लेते हैं।

“प्रेम पुलक केवट कहि नामू। कीन्ह दूर तें दंड प्रनामू।। राम सखा रिषि बरबस भेंटा। जनु महि लुठत सनेह समेटा।।”
वशिष्ठ ने केवट को गले लगा कर धरती पर पसरे हुए प्रेम को मानो समेट लिया। “जनु महि लुठत सनेह समेटा।” की प्रतिध्वनि बहुत दूर तक जाती है।

कितनी सदियों से धरती पर आपसी प्रेम दूर हुआ जा रहा था, अछूतों के प्रति सवर्णों का स्नेह धरती पर लुढ़के हुए स्नेह (मक्खन) की भांँति बिखरा जा रहा था। ऋषिवर ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया।

शूद्र वर्ण या आज की शब्दावली में दलित कहे जाने वाले वर्ग के प्रति राम का क्या दृष्टिकोण है, यह जानने के लिए आवश्यक है कि हम राम के “निज सिद्धान्त” को जाने। मानस के उत्तरकांड में श्रीराम “निज सिद्धांत” की घोषणा करते हैं। बहुत स्पष्ट शब्दों में की गई इस घोषणा को जाने बिना ही कुछ जड़बुद्धि के लोग अपनी अनपढ़ता के चलते “ढोल गंवार सूद्र पशु नारी” के आगे न कुछ पढ़ना चाहते, न कुछ सुनना।

समुद्र के द्वारा प्रस्तुत इस उक्ति पर मूर्खों की तरह अटके रहते हैं। किंतु राम की स्वयं की क्या मान्यता है; उस ओर उनकी दृष्टि नहीं जाती। राम बहुत स्पष्ट शब्दों में अपना सिद्धांत बताते हैं, बल्कि यह भी कहते हैं कि “निज सिद्धांत सुनावउँ तोही। सुनु मन धरि”…. इसे बहुत ध्यान से सुनो!
यह हमारे युग का परम दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि कोई इसे सुनना नहीं चाहता।

वे कहते हैं कि, यों तो समस्त प्राणी मेरे ही द्वारा उत्पन्न किये गए हैं, सभी मुझे प्रिय हैं, अप्रिय कोई नहीं, परन्तु सभी प्राणियों में मनुष्य मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं।

आगे वे कहते हैं कि मनुष्यों में भी द्विज, द्विजों में भी वेदपाठी, वेदपाठियों में भी वेदधर्म का अनुसरण करने वाले, उनमें भी विरक्त, विरक्तों में भी ज्ञानी, ज्ञानियों में भी विज्ञानी -अध्यात्मज्ञानी-, मुझे परम प्रिय हैं। किंतु इन उत्तरोत्तर उत्कृष्ट से उत्कृष्ट व्यक्ति की अपेक्षा भी मुझे अपना दास ही अधिक प्रिय है।

“सब मम प्रिय सब मम उपजाए।
सब तें अधिक मनुज मोहि भाए।।

तिन्हं महँ द्विज तिन्हं महँ श्रुतिधारी।
तिन्हं महँ निगम धरम अनुसारी।।

तिन्हं महँ प्रिय विरक्त पुनि ग्यानी।
ग्यानिहुँ ते प्रिय अति विज्ञानी।।

तिन्हं ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा।
जेहि गति मोर न दूसर आसा।।

पुनि पुनि सत्य कहहुँ तोहि पाही।
मोहि सेवक सम प्रिय कोई नाही।।”

राम यहांँ इस बात को कितना जोर देकर कह रहें हैं यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, यदि “पुनि पुनि सत्य कहहुँ तोहि पाही” पर हमारा ध्यान जाता हो। किसी बात को पुनि पुनि कहने की जरूरत तभी महसूस होती है जब उस बात को दृढतापूर्वक स्थापित करने की मंशा होती है।

राम की इस घोषणा में किसी तरह की अस्पष्टता या संशय न रहे, इस हेतु वे आगे फिर कहते हैं–
“भगतिवन्त अति नीचहुँ प्रानी।
मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी।।”

अर्थात् अत्यधिक नीच भी यदि कोई भक्त है तो वह मुझे प्राणों से भी प्रिय है।”
यहांँ जो बात हर–हाल में याद रखने की है वह यह कि इस घोषणा को राम ने “निज सिद्धान्त” कहा है। अपना स्वयं का सिद्धान्त। वेद, शास्त्र, लोकाचार जो कहता है, कहता होगा, उसमें मत-मतान्तर और विभेद रहते होंगे। राम की व्यक्तिगत मान्यता तो यही है।

समरसता के अग्रेसर राम जाति, वर्ण, लिंग आदि का भी कोई भेदभाव नहीं रखते। जिस “थर्ड जेंडर” पर ध्यान केंद्रित किये जाने को आज मानवाधिकारों की पहल और प्रेरणा बताया जाता है, तुलसी के राम अपनी भक्ति के लिये स्त्री-पुरुष के साथ इस वर्ग को भी याद रखते हैं। तुलसीदास डंके की चोट पर कहते हैं,

“पुरुष नपुंसक नारि वा जीव चराचर कोइ।
सर्ब भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ।।”

यह रामभक्ति का ही बल और प्रताप है कि पक्षियों के राजा गरुड़ का गर्वशमन एक तुच्छ-से पक्षी कौवे से होता हैं। यह कोई साधारण बात नहीं है कि जिस गरुड़ को विष्णु के परमसेवक का स्थान मिला, जो पक्षियों के राजा के रूप में पूज्य है, वह गरुड़ समस्त रूप-गुण-ज्ञानराशि सम्पन्न पक्षियों के साथ कागभुशुण्डि के आगे हाथ जोड़े खड़े हैं।

उससे ज्ञानोपदेश ग्रहण कर रहे हैं। उसकी भक्ति के आगे नतमस्तक हैं। यह कथा अपने प्रतीकार्थ में भक्ति के माध्यम से एक निंदित और तिरस्कृत पक्षी के सर्वोच्च सम्मान को पा लेने एवं उसके सम्मुख सम्राटों और शक्तिशाली सत्ताधीशों के नतमस्तक हो जाने की भी कथा हैं। यह कथा राम की भक्ति में ऊँच–नीच एवं छोटे–बड़े के भेद को समाप्त कर सामाजिक समरसता की प्रेरणा देती है।

वस्तुत: रामकथा का उद्गम ही संपूर्ण समाज के लिए हुआ है। वाल्मीकि रामायण के आरंभ में ही इस ग्रन्थ की फलश्रुति में लिखते हैं-
“पठन् द्विजो वागृषभत्वमीयात्,
स्यात्क्षत्रियो भूमिपतित्वमीयात्।

वणिग्जनः पण्यफलत्वमीयात्,
जनश्च शूद्रोऽपि महत्वमीयात्।।”

(बालकाण्ड , १/१००)
अर्थात् “इस ग्रन्थ को ब्राह्मण पढ़े तो विद्वान् होवे, क्षत्रिय पढे तो राज्य प्राप्त करे, वैश्य पढ़े तो व्यापार में लाभ होवे और शूद्र भी पढ़े तो प्रतिष्ठा को प्राप्त होवे।”

बहुधा ऐसा उल्लेख किया जाता है कि प्राचीन वाङ्मय में शूद्रों को अध्ययन-अध्यापन से वंचित रखा गया। महामुनि वाल्मीकि की यह घोषणा इस मिथ्या और भ्रामक धारणा को ध्वस्त कर देती है। यहांँ शूद्र को भी रामकथा पढ़ने का अधिकार तो दिया ही गया है, इसके पाठ से उसका महत्व बढ़ने की भी कामना की गई है।

सामाजिक समरसता बढ़ाने में रामकथा की भूमिका का इससे बड़ा और क्या प्रमाण होगा?
आदिकवि वाल्मीकि श्रीराम की दो प्रमुख गुण बताते हैं– ‘‘रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता।” (बालकाण्ड १/१३)
करुणामूर्ति राम संसार के जीवमात्र के रखवाले और धर्म के रक्षक हैं।

इसीलिए तो वे भक्तों पर प्रेम उड़ेलने वाले हैं। विश्वास न हो तो निषाद से पूछिए! शबरी से पूछिए! कोल, किरातों से, वनवासियों से पूछिए! पूछिए उस गिलहरी से जो अभी तक अपने राम की अंगुलियों के निशान अपनी पीठ पर लिए इतराती डोलती हैं।
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रामभक्तों को नहीं भटकने देगा ‘बहुभाषीय’ संकेतक

रामभक्तों को नहीं भटकने

रामभक्तों को नहीं भटकने देगा ‘बहुभाषीय’ संकेतक
—अपनी भाषा में सही रास्ते की ओर बढ़ना होगा आसान / रामभक्तों को नहीं भटकने देगा ‘बहुभाषीय’ संकेतक

—देशी—विदेशी दोनों भाषाओं के बन रहे संकेतक / रामभक्तों को नहीं भटकने देगा ‘बहुभाषीय’ संकेतक

जयपुर। अयोध्या नगरी में भव्य राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर सभी जरूरी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। हर छोटी- बड़ी वस्तु, सामग्री व सुविधाओं पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है। हर रोड पर संकेतक लगा रहेगा जिसे है राम भक्त को कही भी अयोध्या में भटकना नहीं पड़े।

ऐसे में विश्व के विभिन्न हिस्सों से अयोध्या के मंदिरों में दर्शन पूजन के लिए आने वाले देशी और विदेशी रामभक्तों को मंदिर परिसर तक पहुंचने में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़े, इसके लिए अलग- अलग स्थानों पर बहुभाषीय ‘संकेतक’ यानी साइन बोर्ड लगाए जा रहे हैं।

ये साइन बोर्ड ही उन्हें बताएगा कि किस ओर जाना है। इन साइन बोर्ड की सबसे खास बात ये ही है कि, इसे देखने वाला अपनी भाषा में ही इसे समझकर सही रास्ते को चुन सकेगा। उसे हर जगह रूककर रास्ते के संबंध में किसी से पूछने की ​आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इससे अनावश्यक यातायात भी बाधित नहीं होगा। इस संकतेक को विशेष रूप से बनाया गया है

इन भाषाओं में हैं ‘संकेतक’ / रामभक्तों को नहीं भटकने देगा ‘बहुभाषीय’ संकेतक

इनमें हिंदी, उर्दू, असमिया, उडिय़ा, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोगरी, तमिल, तेलुगू, नेपाली, पंजाबी, बांग्ला, बोडो, मणिपुरी, मराठी, मलयालम, मैथिली, संथाली, संस्कृत और सिंधी भाषा शामिल है। वहीं संयुक्त राष्ट्र की छह भाषाओं में भी संकेतक लगाने का कार्य हो रहा है, उनमें अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश शामिल हैं।  इन स्थानों पर लग रहे संकेतक—

राम की पैड़ी, नागेश्वर नाथ, भजन संध्या स्थल नया घाट, क्वीन हो पार्क, लता मंगेशकर चौक, रामपथ, जन्मभूमि पथ, भक्तिपथ, धर्मपथ, चौधरी चरण सिंह घाट, रामकथा संग्रहालय, जानकी महल, दशरथ महल, रामकोट, तुलसी स्मारक भवन, छोटी देवकाली मंदिर, सरयू घाट, सूर्य कुंड, गुप्तारघाट, गुलाब बाड़ी, कंपनी गार्डन, साकेत सदन, मंदिर निकट गुप्तार घाट, चौधरी चरण सिंह पार्क, संत तुलसी घाट, तिवारी मंदिर, तुलसी उद्यान, गोरखपुर-लखनऊ बाईपास, बैकुंठ धाम, मिथिला धाम, अयोध्या आई हॉस्पिटल, हनुमानगढ़ी रोड, राजद्वार मंदिर तिराहा, कनक भवन रोड, दिगंबर जैन मंदिर, श्रीराम हॉस्पिटल, राम कचेहरी, रंगमहल, अमावा राम मंदिर, सीताकुंड, मणि पर्वत, अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन आदि।

इसके अलावा मंदिर की ओर जाने वाले उन रास्तों को भी चिन्हित किया जा रहा है, जो श्रद्धालुओं के चलने के लिए भी सुविधाजनक हो। इसके लिए सभी तरह के वाहनों पर भी रोक लगाई जाएगी। ताकि ये पैदल पथ सुचारू ढंग से चल सके। अयोध्या में आने वाले हर भक्त का ध्यान रखा गया है , इन सभी संकेतकों को 22 जनवरी के पहले पूरा करने का लक्ष्य है।

इन स्थानों पर लग रहे संकेतक / रामभक्तों को नहीं भटकने देगा ‘बहुभाषीय’ संकेतक

राम की पैड़ी, नागेश्वर नाथ, भजन संध्या स्थल नया घाट, क्वीन हो पार्क, लता मंगेशकर चौक, रामपथ, जन्मभूमि पथ, भक्तिपथ, धर्मपथ, चौधरी चरण सिंह घाट, रामकथा संग्रहालय, जानकी महल, दशरथ महल, रामकोट, तुलसी स्मारक भवन, छोटी देवकाली मंदिर, सरयू घाट, सूर्य कुंड, गुप्तारघाट, गुलाब बाड़ी, कंपनी गार्डन, साकेत सदन, मंदिर निकट गुप्तार घाट, चौधरी चरण सिंह पार्क, संत तुलसी घाट, तिवारी मंदिर, तुलसी उद्यान, गोरखपुर-लखनऊ बाईपास, बैकुंठ धाम, मिथिला धाम, अयोध्या आई हॉस्पिटल, हनुमानगढ़ी रोड, राजद्वार मंदिर तिराहा, कनक भवन रोड, दिगंबर जैन मंदिर, श्रीराम हॉस्पिटल, राम कचेहरी, रंगमहल, अमावा राम मंदिर, सीताकुंड, मणि पर्वत, अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन आदि। उपरोक्त स्थान अयोध्या के प्रमुख स्थानों में से है।

22 भारतीय भाषाओ में एवं 6 विदेशी भाषा में ये संकतेक लगे रहेंगे | 

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1 अक्षत निमंत्रण अभियान

अक्षत निमंत्रण अभियान

अक्षत निमंत्रण अभियान—

‘गुलाबी नगरी’ के हाथों में सज रहे पीले चावल / अक्षत निमंत्रण अभियान

-बंट रहे अयोध्या से आए अभिमंत्रित अक्षत / अक्षत निमंत्रण अभियान

—जगह—जगह निकल रही अक्षत कलश यात्राएं / अक्षत निमंत्रण अभियान

जयपुर। इन दिनों ‘गुलाबी नगरी’ के हाथों में सज रहे हैं पीले अक्षत। हरेक के हाथ में पहुंच रहे ये पीले चावल बता रहे हैं कि अयोध्या राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उनमें कितना उत्साह है।

अक्षत निमंत्रण अभियान के तहत प्रतिदिन शहर के विभिन्न गली, मोहल्लों और सोसायटी में जाकर स्वयंसेवक अक्षत वितरण कर रहे हैं। इसी के साथ भेंट किया जा रहा राममंदिर का चित्र और मंदिर से जुड़ी जानकारी वाला पत्रक, जो  विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

इसे देखते हुए छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध जयपुर का वातावरण भी पूरी तरह से ‘राममय’ हो चला है। इस पूरे सप्ताह रामधुनी, राम—नाम के जयकारे और विशेष भजन कीर्तनों के साथ विभिन्न टोलियां अक्षत निमंत्रण के कार्य में जुटी रही। 22 जनवरी से पहले हर घर में अक्षत निमंत्रण पहुंचाने का लक्ष्य है।

शहरवासी भी इन टोलियों का माला पहनाकर, तिलक लगाकर व कहीं पर ढोल बजाकर पूरे मन और भाव के साथ स्वागत कर रहे हैं।  इसी कड़ी में मालवीय नगर स्थित श्री मालेश्वर शिव शक्ति मंदिर के तत्वावधान में अयोध्या से आए अक्षत, पत्रक एवं राममंदिर अयोध्या का चित्र मालवीय नगर सैक्टर-5 व आसपास के लगभग 500 परिवारों को संपर्क कर भेंट किए गए।

संपर्क के दौरान लोगों से आग्रह किया गया कि 22 जनवरी को सभी लोग अपने-अपने घरों पर कम से कम 21 दीपक जलाएं। आयोजन को लेकर भांकरोटा अक्षत कलश यात्रा निकाली गई। कॉलोनी वासियों को पीले चावल देकर निमंत्रण दिया गया। इस मौके पर भांकरोटा स्थित राम मंदिर में 251 दीपों से महाआरती की गई।

वहीं सांगानेर श्योपुर मंडल की माधव शाखा के रघुनाथपुरी प्रथम बी एवं गोपालपुरी में कॉलोनी वासियों ने ढाई सौ परिवारों को अयोध्या से आए अभिमंडित अक्षत, रामलला की तस्वीर, रामलला प्राण-प्रतिष्ठा की विस्तृत जानकारी के पैंपलेट का वितरण किया।

दोनों कॉलोनी के रामभक्तों ने राम रथ के साथ श्रीराम का संगीत गुंजित करते हुए प्रत्येक परिवार को अयोध्या से आई समस्त सामग्री वितरित की। इधर, जगतपुरा स्थित पर्ल सोसायटी में भी स्वयं सेवकों ने पहुंचकर अक्षत वितरण किया। साथ ही 22 जनवरी को घर की सजावट करने व दीप जलाने का आह्वान भी किया।

इधर, सेक्टर 5, मालवीय नगर स्थित मालेश्वर शिव शक्ति मंदिर, भांकरोटा स्थित गणेश मंदिर की ओर से भी अयोध्या से आए पूजित अक्षत चावल बांटा गया। भक्तिमय माहौल में महिलाएं पीले चावल न्यू कॉलोनी खारडा स्थित शिव मंदिर लेकर गईं।

निराश्रित बालिकाओं ने भी बांटे ‘अक्षत’—

वैशाली नगर स्थित बालिका गृह में रह रही बालिकाओं ने भी बड़े उत्साह के साथ टोलिया बनाकर क्षेत्र के घरों में पीले चावल बांटे। साथ ही नुक्कड़ नाटक के जरिये भगवान राम के जन्म से राज्याभिषेक के प्रसंग का चित्रण भी किया गया।

वहीं, निवारू रोड, झोटवाड़ा स्थित बालाजी विहार एन कॉलोनी में अक्षत वितरण व आगरा रोड, देवकी नगर स्थित चमत्कारेश्वर मंदिर से बसंत विहार तक अक्षत कलश यात्रा निकाल कर राम उत्सव मनाया गया।

इधर,भांकरोटा स्थित गणेश मंदिर से अक्षत कलश यात्रा निकलकर गणतपुरा रोड स्थित राम मंदिर पहुंची। यहां पर 251 दीपों से भगवान राम की आरती उतारी गई, जिसमें बढ़ चढ़कर लोगों ने ​हिस्सा लिया।

झोटवाड़ा के निवारू रोड स्थित आश्रम बस्ती में भी 31 दिसंबर 2023 से 7 जनवरी 2024 तक प्रतिदिन रथ यात्रा निकली गई और आश्रम बस्ती के प्रत्येक घर में  अयोध्या से आये हुवे अक्षत एवं निमंत्रण पत्र और श्री राम मंदिर के चित्र दिए गए | बस्ती के प्रत्येक पुरुष भाई, माता एवं बहनो के उत्साह देखते ही बनता था ? 22 जनवरी को भव्य कार्यक्रम रहने वाला है।

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