न्यायोपार्जित वित्तस्य

न्यायोपार्जित वित्तस्य

न्यायोपार्जित वित्तस्य , दशमांशेन धीमतः ।

कर्तव्यों विनियोगश्च , ईश्वर प्रीतयथरमेव च ।।

भावार्थ : न्याय से कमाया धन भी पवित्र तब होता है, जब उसका दसवां भाग प्रेमपूर्वक ईश्वर को समर्पित कर दिया जाता है । 

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